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।। सेंध ।।
जान से ज़्यादा का खतरा है पढने के बाद बंद करके नहीं रखी जा सकती किसी और की डायरी हमेशा फड़फड़ाते रहेंगे अँधेरे में कुछ सफ़े
डसेंगे अक्षर वे साँपों की तरह लहराते-चमकते हुए
प्यास से सूखेगा कंठ पसीना छलछला आएगा माथे पर रह जाएगा जीवन पँक्तियों के पहाड़ के उस तरफ और लौटना होगा असंभव
आखिरी वक़्त होगा यह जो बहुत लम्बा चलेगा आखिरी साँस तक
यह वह नहीं उसकी लिखत है
माफ नहीं करेगी यह - आशुतोष दुबे ( आशुतोष दुबे जी का नाम समकालीन हिंदी कविता में अग्रणी के तौर पर लिया जाता है, अमिधा और व्यंजना में ये अपनी कविता में पीर भी कोमल ढंग से लिखते हैं। डायरी पर लिखी उनकी यह कविता 'सेंध' अनूठे बिंब प्रस्तुत करती है। ) |
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