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।। वह, जो शेष है ।।

अभी मैंने सोचा नही

तुम्हारे लिये

जैसे सोचता है कोई

अखबार में पढ़ते हुए ,

कुढ़ते हुए

राजनीति की सुर्खियों पर .

अभी सिमटी नही हैं उम्मीदें

जैसे सिमट जाती है एक पूरी दुनिया

महानगर के किसी छोटे फ्लैट में .

और अभी खामोश नही हुईं

अपेक्षाएं और उलाहने भी,

जैसे खामोश होजाते हैं देहात के रास्ते

अँधेरा होते ही ।

अभी यकीन भी नही हुआ

कि व्यर्थ है मेरा होना .

तुम्हारे लिये ,

गुजरे साल के कैलेण्डर की तरह ।

और...

तुम्हारी उदासीनता के बावजूद

जब भी तुम्हें सोचती हूँ,

मन होजाता है नीम का झुरमुट

सुबह--सुबह चिड़ियों के कलरव से गूँजता हुआ

और नकार देता है सन्देह को

गलत 'पासवर्ड' की तरह

क्या यह समझना काफी नही है

कि अभी शेष है कहीं कुछ ,

रेत के नीचे मौजूद पानी जैसा ।

सोचकर देखो ,

क्या यह तसल्ली की बात नही है कि

यूँ कुछ शेष होना,

एक खूबसूरत नियामत है

जिन्दा इन्सानों के लिये ?

-गिरिजा कुलश्रेष्ठ
मोहल्ला - कोटा वाला, खारे कुएँ के पास,
ग्वालियर, मध्य प्रदेश (भारत)

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