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फ़िर भी वह ख़ुद को घोषित करती थी- मूड स्विंग्स ज़ोन मुझे वह कह देती थी कभी बिल्कुल सच्चा और मुझे ही बता देती थी कभी-कभी कारण उसके त्वरित आवेश का मैं जानता था उसका इतिहास अनावृत्त देखे थे मैंने बचपन में पाए हुए उसके घाव जिनसे रिसती थी वजहें
उसके मूड
स्विंग्स की साम्यावस्था में ही रखने की कोशिश करती रहनी थी मुझे साम्यावस्था से हर विचलन की
ज़िम्मेदारी भी
होनी थी मेरी ही कि बोरियत भरा होगा
उसके लिए सदा
सामान्य रहना बोरा भर हंसी और चुटकी भर उन्माद उसने कहा- "शायद" शायद कहकर उसने खुली छोड़ दी एक खिड़की जिससे मैं आ सकता था अपने सच और बेबाकी के साथ हवा-रोशनी भी यूं ही किसी खिड़की से आते थे सहलाते थे उसका रोम-रोम मिटाते थे बुरे छुअन की याद और वह पुरसुकून नींद सो पाती थी।
प्रेम क्लीशे किसी भी उम्र में प्रेम नाम की घटना की शुरुआत उन्हीं फिल्मी गीतों से होती है जिन्हें सुनता रहा जवान होने के दौरान कच्ची उम्र से दिखती है वही मनीषा कोइराला हंसती हुई, झूला झूलती हुई कमबख्त, हर बार होता है प्रेम मुझे हंसी और आंखों से रंग और आकार बदलता रहता है आंखों का बहुत कुछ एक जैसा होता है हर बार इतने पर भी प्रेम का ढंग क्लीशे* मुझे कभी नहीं लगा । * दोहराया हुआ, बहुत इस्तेमाल कर घिसा हुआ विषय
~ देवेश पथ सारिया * कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया प्रांत के विक्टोरिया शहर का एक संग्रहालय |
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