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गज़लें
1.

वो मोअजिज़ा जो न गुज़रा, गुज़र गया होता
जो वो मुड़ा था, तो बाहों में भर गया होता

वो चाँद बाम पे बैठा था रात देर तलक
वगरना वक़्त पे मैं अपने घर गया होता

मैं उसकी आँखों में होता, वो मेरे पहलू में
सियाह शब का नसीबा सँवर गया होता

सितम है ख़्वाब भी टूटा तो किस बुलन्दी पर
बिखरना था, तो ये पहले बिखर गया होता

तेरे विसाल के लम्हों की याद थी वरना
मैं तेरे हिज्र में कल रात मर गया होता

 

2.

ऐसा नहीं करना, कभी वैसा नहीं करना
इक बार बता दो मुझे, क्या क्या नहीं करना

कल मैंने कहा था न, तुम्हें भूल चुका हूँ
वो झूठ था, तुम उस पे भरोसा नहीं करना

ख़ुद को तो भुला बैठा हूँ, तुमको भी भुला दूँ
इतना भी मुझे अपना ख़सारा नहीं करना

ऐ चारागरो, दर्द मेरा उसकी अता है
रहने दो मुझे इसका मुदावा नहीं करना

पूछा जो सबब ज़ब्त का, फिर फूट पड़ेंगीं
अब छोड़ो, मुझे आँखों को दरिया नहीं करना

नींदें, मेरी रातें, मेरे सपने, मेरे आँसू
जाओ भी मुझे इनका तक़ाज़ा नहीं करना

 

3.

मैंने यूँ चाहा उसे ख़ुद से बड़ा कर देना
अपने सजदों से उसे बुत से ख़ुदा कर देना

यूँ तो आदत है जफ़ा सहने की, लेकिन फिर भी
तुम दग़ा दो तो मेरी जान बता कर देना

जो सज़ा देनी हो दो, पर कोई इल्ज़ाम तो हो
नाम मेरे कोई अपनी ही ख़ता कर देना

तुम वफ़ा−ख़ू हो मेरा इतना भरम रह जाए
अब किसी और को चाहो, तो वफ़ा कर देना

ज़ख़्म भर जाता है कुछ शाम तक आते आते
शम’अ जल जाए तो फिर ज़ख़्म हरा कर देना

मशवरा है ये बिरहमन का, बड़े काम का है
अब के दिल, हाथ नुजूमी को दिखा कर देना

 

4.

हमारी उम्रें गुज़र चुकेंगी, न तुम रहोगे न हम रहेंगे
फ़िज़ा में, अफ़लाक1 पर, हवा में मगर ये क़िस्से रक़म रहेंगे

जो नक़्श−ए−माज़ी तुम्हारी यादों ने खेंच रक्खें हैं लौह−ए−दिल पर
छुपा तो लूँगा जो तुम कहो, पर निशान ये सौ जनम रहेंगे

किताब−ए−माज़ी के बीच तुमने छुपा के रक्खें हैं उन ख़तों के
वरक़ अगर सूख भी गए तो, हुरूफ़ अश्कों से नम रहेंगे

वो रंग−ए−तसवीर हो कि मौज़ू सुख़न का हो, या हों साज़ के सुर
मैं चाहे कोई ज़बान बोलूँ, लबों पे दर्द−ओ−अलम रहेंगे

हमेशा ताज़ा रहेगी मेरी ग़ज़ल की ख़ुशबू कि इसमें तेरी
अदा की शोख़ी, नज़र के पैमाने, ज़ुल्फ़ के पेच−ओ−ख़म रहेंगे

-अमित गोस्वामी

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