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सुनो प्रिये

-एक-

सुनो प्रिये
जब मैं काकुलें खोले
आधे वृत्त सी
झूल जाऊँ,
तुम्हारे आलिंगन में,
तो उसी दम
तुम
मेरी कमर पर
बांध देना
सदी के
सबसे खूबसूरत
गीतों की कमरघनी

और देखना
बहुत धीरे से
सरक आयेगा
चाँद,
मेरी हथेली पर
और फिर
हजारों ख्वाहिशें
फूलों सी खिल उठेंगी,

सुनो प्रिय
किसी दूधिया चाँदनी रात में
मेरे चेहरे से
जुल्फों को
हटाते हुए,
तुम फिसल आना
पीत पराग सी
नरमी लिए
और मेरे गले के तिल पे
धर देना
कोई
दहकता बोसा

और फिर देखना
किसी चन्दन वन का
धू-धू कर जलना


-दो-

सुनो प्रिये
मेरे अंदर उतरती है
कोई भरपूर नदी
जो दूर ऊँचे ख्वाहिशों के टीलों से
आ गिरती है किसी जलप्रपात सी

सुनो प्रिये
प्रेम में पड़ी औरत
हो जाना चाहती है
नदी से झील
और टिकी रहना चाहती है
प्रेमी के सीने पर
सदियों
सदियों
मुँह छिपाए
सुनना चाहती है
अपना ही देहगीत

-तीन-

सुनो प्रिये
अपनी ही तयशुदा
बंदिशों के बावजूद
संभावनाओं की आखिरी हद तक
एक-दूसरे को
इतनी शिद्दत से चाहना
अपनी ही दूरियों में
एक दूसरे को पल पल महसूस करना
और फिर तवील रात के अंधेरों को
मुस्करा कर सहते हुए
रख लेना
अपनी आँखों पर
एक वर्जित प्यार

सुनो प्रिये
यही वो प्रेम है
जिसमें पड़ी औरत
हो जाती है
खुशबू सी लापता।

- रंजीता ‘फलक’

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