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कविता

"बारह मृत लोगों के बीच
मृत्युशय्या पर पड़े अधमरे की
मुट्ठी में दबा देना बस
सफ़ेद पारीजात
कान में बिना कुछ फ़ुसफ़ुसाए
है जैसे, प्रेम में किसी को जाने देना

पत्तियों से छनकर धूप जब
पड़ती है कटे पेड़ के तने पर
बनाती है झरोके
खेलती हैं गिलेहरियाँ
घास पे बिछे फूलों से
लेकिन गिलेहरियों का नर्गिस के फूलों समीप न जाना
है जैसे, प्रेम में, प्रेम से आगे निकल जाना

प्रेम में जाने देना और
प्रेम से आगे निकल जाना,
ले जाता है आपको
एक कदम नज़दीक
मृत्यु के।

पतझड़ के सूखे पत्तों को
आंगन से न झाड़ना
है जैसे, प्रेम में किसी को रोक लेना

सड़क से उठाकर, गर्द-आलूद मोरपंख
सहलाते रहना अपना गाल
है जैसे, प्रेम में धसे रहना

प्रेम में रोक लेना और
प्रेम में धसे रहना
ले जाता है आपको, एक कदम नज़दीक
मृत्यु रूपी जीवन के।

प्रेम में मृत्यु एवं मृत्यु रूपी जीवन
है जैसे, प्रेम की सारी कल्पनाओं को
मेज़ पर कुरेद कर, बार बार दोहराना।"


 

- विपस्सना वहिब गौतम

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