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लेडी लाज़ारस - सिल्विया प्लाथ

हर दस साल में
एक बार मैंने फिर किया
मैं कर सकी
सरेराह मिले किसी तिलिस्म की तरह
मेरी त्वचा चमक रही थी
जैसे हो कोई चमकीला नाज़ी लैम्पशेड *
मेरा दाहिना पैर जैसे पेपरवेट
मेरा चेहरा बिन नुकूश सा-सा
जैसे हो कोई महीन ज्यू – लिनन

इसे पेपर-नैपकिन की तरह छील दो
ओ मेरे दुशमन – ए – जाँ
क्या मैं डरती हूँ !

नाक, आंखों के गड्ढे, बत्तीसी
खट्टी सांस
एक दिन में ही चुक जाएंगे
जल्दी ही लील लेगी कब्र की गहरी गुफ़ा
मांस-मज्जा तक
जैसे लीलता है घर मुझे
मैं एक मुस्कुराती हुई युवती
मैं अभी केवल तीस की हूँ
और बिल्ली की तरह
मुझे नौ मौतें मरना होगा
यह तीसरी बार है

क्या बकवास है !
यूं हर दशक में ज़ाया होना
उफ़! ये लाखों तंतु ...
मूंगफली की तरह चूर-चूर करता
भीड़ का यह समुद्र
जिसमें मैं बहती हूँ

इन्हें खोल लेने दो मेरे हाथ-पैर
जैसे कोई स्ट्रिप-टीज़
महानुभावों और प्यारी महिलाओं
ये मेरे हाथ हैं
मेरे घुटने
हो सकता है मैं कंकाल दिख रही होऊँ
कोई बात नहीं मैं वही,
ठीक वैसी ही औरत हूं

पहली बार जब ऎसा हुआ
मैं दस की थी
वह महज हादसा था

दूसरी बार मुझे फर्क पड़ा
मैंने चाहा कि यह खत्म हो जाए
कभी दुबारा न होने के लिए
एक सीप की तरह
मैंने खुद को चट्टान में छिपा लिया था
उन्हें मुझे बारम्बार पुकारना पड़ा था
उन्हें नोंचना पड़ा था
मेरी चिपचिपी परतों से मोती –सा

मरना
अन्य कलाओं की तरह एक कला है
जिसे मैं बेहतरीन ढंग से करती हूं
मैं इसे यूं करती हूं कि नर्क तक महसूस हो
मैं इसे यूं करती हूँ कि यह असल महसूस हो
मुझे लगता है कि तुम कह सकते हो
कि मैं इसमें माहिर हूँ

इसे बंद प्रकोष्ठ में करना आसान है
इसे असान है करना और बने रहना
हाँ! यह नाटकीय तो है
फिर लौट आना दिन-दहाड़े
उसी जगह, उसी चेहरे के साथ
उसी पशु के पास
फिर खुशी से चीखना
‘ एक चमत्कार!’

यह मुझे मुक्त करता है
आवेशित करता है
मेरे घावों को रोशनी देने के लिए
इसमें एक आवेश है
यह मुफ़ीद है
मेरे दिल की आवाज़ सुनने के लिए ---
हाँ इसमें एक आवेश है, एक बहुत बड़ा आवेश
शब्द के लिए स्पर्श के लिए
और थोड़े लहू के लिये
मेरे टूटे बाल या कपड़े के टुकड़े के लिए

ओ उस..के डॉक्टर
ओ उस..के दुश्मने-जां
मैं तुम्हारी संगीत कृति ऑपस* हूँ
मैं तुम्हारा अनमोल ज़ेवर हूँ
मैं तुम्हारी विशुद्ध सोन-चिरैया
जो पिघल कर चीख में बदल जाती है
मैं बदलती और जलती हूं
न, यह मत सोचो कि मुझे खबर नहीं
तुम्हारी परवाह की
राख ...राख
तुम डुबोते हो और मिलाते जाते हो
मांस-मज्जा, हड्डी कुछ नहीं बचता

साबुन की बट्टी
शादी की अंगूठी
सोने की भराई
उसका ख़ुदा ...उसका शैतान

सावधान
सावधान

अपनी राख से
मैं उठती हूँ अपने लाल बालों के साथ
मैं लीलती हूं पुरुषों को हवा की तरह

(अनुवाद : मनीषा कुलश्रेष्ठ )

 

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