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नाम तुम्हारा
करीब आयेगी कभी जिन्दगी इतनी सोचा न था दीन से दिन दिन दूर पागल की लगन से चला था .....चलता रहा था पर कल की शाम जब बातों ही बातों में लायी तुमने सुन्दर सुहानी बयार और ब्रज के कदम्ब की महकायी खुशबू निनाद कर उठे यन्त्र जीव मन और मैं सोचने लगा क्या सचमुच ऐसा होता है क्या करीब आती है कभी जिन्दगी इतनी
नयनतारा
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क्या जवाब दूं
क्या जवाब दूं कि मन उदास क्यों है सब कुछ तो है मेरे पास फिर इक कमी का एहसास क्यों है जी लीं जो इक बार घड़ियां भूले न मन से वो हास क्यों है कह तो दिया कि जाते हैं फिर बुलावे की आस क्यों है सभी तो गुजर गए काएदे से मगर साथ मेरे ही ए परिहास क्यों है संजोयी हैं जतन से ख्वाबों की लड़ियां नहीं जरा भी उनको ये आभास क्यों है हर बीतता क्षण : बीते इक जीवन जीवन में इस कदर मौत का निवास क्यों है मर कर भी मिट न पाएंगे गम सारे रूह को इस बात का विश्वास क्यों है न पूछो सवाल ऐसै कि इनके जवाब नहीं होते
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