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प्यार
उतना ही मांगना प्यार प्रिये जितना मै दे सकूं बंट गया है टुकडों मे आकाश में बिखरे बादलों सा कैसे ढंके सारी धरती कैसे रिझाये सारे खेत बादल सा ही प्यार मेरा वह दूर सूखता खेत और पसीने नहाया किसान बादल बन उधर दौड़ पडता हूं बरसने तुझे प्यासा छोड प्रिये उस खेत की फसल के मोती उपहार में स्वीकार कर लेना प्रिये उतना ही मांगना प्यार जितना मैं दे सकूं प्यार है ज्ञान जैसा बांटता चला जा रहा हूं जितना कम मांगोगी उतना ही अधिक आएगा हिस्से में बट बट कर चार गुना हो जाता है प्यार आएगा सारा सिमट कर तेरी ही झोली में प्रिये उतना ही मांगना प्यार जितना मै दे सकूं। |
अमोल बूंद
मोती के लिये मिले ना जल वो अमोल बूंद वो अमोल बूंद पलक का आंसू भी लाया सीप के गर्भ में न ठहरा मोती न बनी अश्रु बूंद वो अमोल बूंद सूरज से पहले प्रभात में चुरा लाया विशुद्ध ओस मोती न बनी ओस बूंद वो अमोल बूंद भटका तेज धूप में मृगजल के पीछे हाथ न लगा पानी एक बूंद टपकी पसीने की बदल गई मोती में वो अमोल बूंद वो अमोल बूंद
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