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एक और द्रोणाचार्य अंगूठे कटे वंशज एकलव्य के सदियों से ऐसे दो, दो से लाख हो गये है पराश्रित निष्प्रभ गुलाम। हे द्रोणाचार्य एकलव्य का अंगूठा लेकर अधिक किया गया है ज़ुल्म अच्छा होता तुम उसके प्राण छीन लेते तो उसका वंश इस तरहा फैलता तो नहीं बिना अंगूठे का, पराश्रित और निष्प्रभ आज द्रोण तुम्हारे अपने वंशज इन लाचार एकलव्य पूत देख देखकर शर्म महसूस कर रहे है धिक्कार रहे हैं तुम्हें। लेकिन मैं परेशान हूं कि तुमने ब्राह्मण धर्म निभाया मजबूर होकर या वास्तव में तुम प्रेरित थे गुरूदक्षिणा से।
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