मुखपृष्ठ  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | डायरी | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 Home |  Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

You can search the entire site of HindiNest.com and also pages from the Web

Google
 
एक और द्रोणाचार्य

अंगूठे कटे वंशज एकलव्य के
सदियों से
ऐसे दो, दो से लाख हो गये है
पराश्रित निष्प्रभ गुलाम।

हे द्रोणाचार्य
एकलव्य का अंगूठा लेकर
अधिक किया गया है ज़ुल्म
अच्छा होता तुम उसके प्राण छीन लेते
तो उसका वंश इस तरहा फैलता तो नहीं
बिना अंगूठे का, पराश्रित और निष्प्रभ

आज द्रोण तुम्हारे अपने वंशज
इन लाचार एकलव्य पूत देख देखकर
शर्म महसूस कर रहे है
धिक्कार रहे हैं तुम्हें।

लेकिन मैं परेशान हूं कि
तुमने ब्राह्मण धर्म निभाया मजबूर होकर
या वास्तव में तुम प्रेरित थे गुरूदक्षिणा से।

– डा सी एस शाह
 

 


यात्रा

ॐ से शुरू रेल का सिलसिला
वेद वेदान्त. गीता इसके दिशामार्ग
मैं ही मुसाफिर बारबार
बदलते रूप में और वस्त्रों में।

ज्ञान भक्ति कर्म के अनुरूप
रफतार तेज या धीमी
बुद्ध.. महवीर. ख्रिस्त. शंकर
जंक्शन के स्टेशन है
रेलगाडी यहॉं
कुछ ज्यादा देर रूकती है।

कई रास्ते यहॉं से निकलते हैं
कुछ लोग उतर जाते हैं
इन्हे मंज़िल समझ।
कुछ आगे निकल चलते हैं
एक अनन्त प्रवास की ओर।

– डा सी एस शाह

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com