मुखपृष्ठ
|
कहानी |
कविता |
कार्टून
|
कार्यशाला |
कैशोर्य |
चित्र-लेख | दृष्टिकोण
|
नृत्य |
निबन्ध |
देस-परदेस |
परिवार
|
फीचर |
बच्चों की
दुनिया |
भक्ति-काल धर्म |
रसोई |
लेखक |
व्यक्तित्व |
व्यंग्य |
विविधा |
संस्मरण |
डायरी
|
साक्षात्कार |
सृजन |
स्वास्थ्य
|
|
Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | Feedback | Contact | Share this Page! |
|
आंखों का क्या
आँखों का क्या वो तो यूँ ही गाहेबगाहे भर आती हैं। सोने से पहले रोने से नींद मुझे बेहतर आती है।। मेरी किस्मत से आँधी का ना जाने कैसा नाता है। तूफाँ को ले साथ बिचारी फिर फिर मेरे घर आती है।। मुसीबतों को मेरे घर का पता किसीने बता दिया है। तरह तरह का भेस बना वो अकसर मेरे घर आती हैं।। परेशानियों का भी मुझ पर आने का अंदाज़ अलग है। ऊपर से सजधजकर अंदर पहन ज़िरहबख्तर आती हैं।। उलझन को सुलझाने पर भी लौट दुबारा यूँ आती हैं। सावन के महिने में दुलहन ज्यूँ अपने पीहर आती है।। ग़म का मुझसे और 'ज्ञान' का ग़म से कुछ ऐसा रिश्ता है। ज्यूं परवाने के पंखों को जला शमा खुद मर जाती है।।
बहारों से न तुम पूछो |
अगर मौसम सुधर जाता, किसी का क्या बिगड़ जाता।
|
|
(c) HindiNest.com
1999-2021 All Rights Reserved. |