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तुझे किस नाम से पुकारूं ! तुझे किस नाम से पुकारूं पर शाम के धुंधलके में तेरी आंखो के चमकते सितारों को‚ यों देख रही हो आंखे मेरी‚ ज्यों पहली बार देखा हो सितारा‚ गर तेरी आंखों झरता‚ प्यार का झरना‚ मेरी आत्मा के सागर में‚ हो जाकर मिलता‚ तो तुझे किस नाम से पुकारूं ! तुझे किस नाम से पुकारूं ! गर मुझ पर डली‚ मुझ पर टिकी नज़र तेरी‚ उस कोमल पक्षी सी हो नर्म‚ जिसका हर पंख हो शांति स्वरूप‚ और हर पंख का स्पर्श‚ उस सिरहान–सा कोमल‚ जिस पर धरते ही सिर‚ पा जाते हो ज्ञान‚ ज्ञानी‚ तो तुझे किस नाम से पुकारूं ! तुझे किस नाम से पुकारूं ! गर तेरे मधुर स्वर‚ भ्रमित कर डालें जगत को‚ औ ' सूखे बेल–पत्र‚ झटपट ओढ़ें हरित परिधान‚ यह सोच‚ कि कोयल रही कूक‚ आ गया बसंत औ '‚ अब तक न पहने नये वस्त्र‚ तो तुझे किस नाम से पुकारूं ! तुझे किस नाम से पुकारूं ! गर मेरे अथरों तक पहुंचते‚ माणिक्य से चमकते तेरे अधर‚ प्रलय की अग्नि से‚ उस चुंबन में भरें उनको‚ कि न यह जग रहे‚ न भोर‚ न दिन‚ न रात‚ सुध–बुध मैं भूलूं जगत की‚ औ ' मोक्ष को कर जाऊं प्राप्त‚ तो तुझे किस नाम से पुकारूं ! मेरी हर खुशी की जननी‚ गर तू हो वो परी कन्या‚ जिसका हो नभ तक जादू‚ चकाचौंध तेरी चमक को‚ हरदम लजाती हो मुझको‚ जो ऐसा हो तू इक खजाना‚ नामुमकिन हो जिसको कि पाना‚ मेरा सबसे बड़ा दुस्साहस‚ तो तुझे किस नाम से पुकारूं ! अनुवाद : इन्दु मज़लदान
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तेरी आंखो का प्रहरी जरा–जीर्ण हाथों से अपने तेरी बांहे थामूंगा बूढ़ी इन आंखों से अपनी तेरी आंखे बांधूगा। सृष्टि के विनाश पर भयभीत भगोड़ा–सा आया हूं पास तेरे बैठूंगा सहमा–सा। जरा–जीर्ण हाथों से अपने तेरी बांहे थामूंगा बूढ़ी आंखों से अपनी तेरी आंखे बांधूगा। क्या जानूं किस पल तक तेरा रह पाऊंगा फिर भी इन बांहो इन आंखो को थामूंगा। – एन्द्रै ऑडी अनुवाद : इन्दु मज़लदान
सितंबर के अंत में
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