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प्रौढ़ प्रणय निवेदन  

उम्र अब साठ की हो रही है,
तबीयत किन्तु रसिकों सी मचल रही है।
मैंने कहा प्रिये हो जाओ बाहुपाश में बद्ध,
उसने कहा आपकी तोंद कर रही है मेरी गति अवरुद्ध।
मैंने कहा सुन्दरी क्यों न हम कामकेलि करें,
उसने कहा आप अपनी उम्र का लिहाज करें।
मैंने कहा तुम्हारी हँसी में दामिनी दमकती है,
उसने कहा आपकी चाँद भी चमकती है।
मैंने कहा प्रिये तुम्हारी चाल हिरनी सी है,
उसने कहा आपकी टाँगें बगुले सी हैं।
मैंने कहा प्यारी सुनाओ एक गाना,
उसने कहा लौटते हुए सब्जी लेते आना।
मैंने कहा तुम्हारे तन से आती है सुगंध,
उसने कहा बुढ़ापे से आपकी बुद्धि है मन्द।
मैंने कहा मेरे मन में उमंगें फड़कती हैं,
उसने कहा मेरी तो हड्डियाँ कड़कती हैं।
मैंने कहा मेरे मन में अनंग मचल रहा है,
उसने कहा मेरा तो मुआ सर दुख रहा है।

– लक्ष्मीनारायण गुप्त

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