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प्रेम
जो जानते हैं कि
प्रेम कैसे किया जाता है
वे नहीं जानते
प्रेम क्या है?
जो जानते हैं
प्रेम क्या है?
वे नहीं कर सकते प्रेम
प्रेम की तरह
इसीलिये तब भी कहा था तुमसे
अब भी कहती हूँ
जानो
या
करो

– जया जादवानी
 

   

 

गर्भाशय



वह गर्भाशय में शोर नहीं करती
पड़ी रहती है चुपचाप
उसके पानी में बगैर हिले डुले
अपनी खैर मनाती
तिर जाती है इस पार से उस पार तक
कुछ नहीं मिलता उसे
विरासत में
न सपने‚ न हँसी‚ न खुशी
पता नहीं कैसे बिन – चुन लेती है
थोड़े बचे खुचे इधर उधर से
हाथ सेंकने को कभी कड़ी ठण्ड में
न वह शोर करती है
न हलकान होती‚ न ऊबती
एक गर्भाशय से दूसरे में
स्थानान्तरित होती लड़की
सिर्फ उदास होती है
नाल कटने के बाद भी
नाल विहीन नहीं होती लड़की
पड़ी रहती है गर्भाशय में चुपचाप
अपने हाथ पैर समेटे
अपनी परिधी में।

– जया जादवानी
 

स्त्री विशेषांक

 

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