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मिशीगन झील
के तट पर
1
दो सौ तैंतीस ईस्ट वैकर ड्राईव‚ शिकागो
अट्टालिका की पैंतालीसवीं मंज़िल
मैं मोहित सा देख रहा हूँ
सुदूर क्षितिज तक लहराती
मिशिगन झील‚ नहीं कोई पहाड़ आस पास
केवल मिशीगन झील
मैं देख रहा हूँ
चुनौती देते ऊंचे खड़े नीले काले पहाड़
पुकारते‚ रहस्य खोलने को आतुर घने बियाबान जंगल
अपने में शैवाल सी समा लेने को निहारती
पन्नई हरी झीलें
गोलाइयां लिये आड़ुई क्वांरी मरूथलियां
घाटियों की गोद में अलसाए हरे भरे मैदान
क्रीड़ा के लिये इठलाती मचलती नदियां
और वे केसर की क्यारियां‚ आह!
कौन बटोर ले गया सारी केसर?
अरे वह स्नान करती एक प्रगल्भा
अब वह कर रही श्रृंगार अपना
असंख्य हीरे मोती मणियों से झिलमिल झिलमिल
ओढ़ रही दुकूल वह‚ एक प्रगाढ़ पन्नई और दूसरा चंदनिया
अचानक सिमट जाती है वह सद्यस्नाता
नीलाभ श्यामल पहाड़ की बाँहों में
यह तो जादुई देश है
वह जादू ही तो होता है
जब झील के अन्र्तमन में
समा जाता है आकाश
और आकाश पर छा जाती है झील!
2
दो सौ तैंतीस ईस्ट वैकर ड्राईव‚ शिकागो
अट्टालिका की पैंतालीसवीं मंज़िल
देख रहा हूँ मैं
नौसेना पोतघाट से काफी दूर
चली जा रही तैरती कुछ कागज की नाव सी
और सुदूर क्षितिज की हल्की गोलाई
अनन्त का आभास देती सी
क्षितिज के पार अनन्त नीलसागर
लहरें जा रही हैं क्षितिज के पार
वह चलने सी दिखती कागज की नाव
भ्रमित चकित थकित खड़ी हुई है थिर सी
मिशिगन सागर के वक्षिल रोमों से
पुरवैया खेल रही सी
टेर रही सी
उसके पीछे सागर भागता सा
दोनों हाथों में हाथ लिये
बनाते हुए लहरों पर लहर
उपर नीचे झूलते लहराते
इस क्षितिज से उस क्षितिज
मन सा
कौन है भागता कौन है थिर
और यह थिरकन
किसकी है धड़कन
सागर अथाह अमित
उससे खेलती है हवा
आनन्दित होती लहरें
लहरा रही हैं मेरा मन
क्या हैं यह लहरें?
डुलता है ऊपर नीचे जल
हवा आवेग में भरती है उड़ान
तरंगे छू लेती हैं आसमान
अथाह सागर का अन्र्तमन
सब देखता रहता है शान्त
आनन्द में मग्न
सब देखता रहता है शान्त
3
दो सौ तैंतीस ईस्ट वैकर ड्राईव‚ शिकागो
अट्टालिका की पैंतालीसवीं मंज़िल
देख रहा हूँ मैं सम्मोहित
मिसिगन झील पर तरंग लीला
वृत्ताकार क्षितिज की अनंत दूरी तक
खेल रही हैं लहरों पर लहरें अनन्त
लेज़र किरणों की तूलिका से
रचे जा रहे हैं
कुछ मूर्त
कुछ अमूर्त विशाल जल – चित्र
घाटियों को सरोबार रखती नदियां
नदियों को प्रवाहित रखते वन
वनों में पंछी करते गान
पल प्रतिपल जन्म लेते होते विलीन
चित्र एक साथ अनेक
घटनाएं एक के बाद एक
चलती रहती त्वरित तरंगित लीला
क्या मैं हज़ारों वर्षों को
नहीं नहीं लाखों वर्षों को
घटते देख रहा हूँ पल प्रतिपल
इस विराट सागर के कैनवस पर
–
विश्वमोहन तिवारी‚ पूर्व एयर वाईस मार्शल |
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