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अनुत्तरित प्रश्न – डा मिथिलेश शर्मा‚ कनेक्टीकट |
अजनबी
अजनबी रास्तों पर पैदल चलें कुछ न कहें अपनी अपनी तन्हाइयां लिये सवालों के दायरों से निकलकर रिवाज़ों की सरहदों के परे हम यूं ही साथ चलते रहें कुछ न कहें चलो दूर तक तुम अपने माज़ी का कोई ज़िक्र न छेड़ो मैं भूली हुई कोई नज़्म न दोहराऊं तुम कौन हो मै क्या हूं इन सब बातों को‚ बस रहने दें चलो दूर तक अजनबी रास्तों पर पैदल चलें –
दीप्ति नवल‚ मुम्बई दो मुक्तक
– अतुल शर्मा‚ लखनउ |
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