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अनजाना अनसोचा बन्धन!
क्या कह तुम्हें करूं संबोधन !
अनजाना अनसोचा बन्धन !
बिन बोले कहने की भाषा
प्रीत भरी पगली अभिलाषा
बदली जीवन की परिभाषा
लेप किये चाहत का चंदन
अनजाना अनसोचा बन्धन!
नदिया कुछ चंचल हो जाती
बगिया बहकी बहकी गाती
बदरी है बूदें बरसाती
फिर से लौट आया रे बचपन
अनजाना अनसोचा बन्धन !
ना रसमों कसमों के जाले
बिना किसी सांचे में ढा.ले
सपने सजने लगे निराले
एक दूजे पर मोहित दो मन
अनजाना अनसोचा बन्धन !
बिन मौसम की बारिश जैसी
आसमान में आतिश जैसी
सख़ियों की इक साज़िश जैसी
मीठी मीठी सी यह उलझन
अनजाना अनसोचा बन्धन !
कड़ी धूप में मिली छांव रे
थिरक रहे पग हुए बावरे
राधा को मिल गये सांवरे
निष्ठा का निस्वार्थ समर्पण
अनजाना अनसोचा बन्धन !
पीड़ा को पीड़ा पहचाने
घायल की गति घायल जाने
दुख़ में भी हंसते दीवाने
प्रिय की चिंता का ले चुम्बन
अनजाना अनसोचा बन्धन !
एक गहरा विश्वास का नाता
अल्हड़ से अहसास का नाता
धरती से आकाश का नाता
अक्षय आस्था का आलिंगन
अनजाना अनसोचा बन्धन !
इक धुन पर गाती दो धड़कन
अनजाना अनसोचा बन्धन !
 

– राज जैन

पीछे
पीछे क्या कुछ छूट गया है
सांसों में संगत कुछ कम है
पलकें भी थोड़ी सी नम है
होठों पर मुस्कान है झूठी
गुमसुम सा सीने में ग्.ाम है
सच से मुंह मोड़ें तो कैसे
कसमों को तोड़ें तो कैसे
तिनका तिनका नीड़ बनाया
एक दिन में छोड़ें तो कैसे
कितने खाली सब आले हैं
कई सवालों के जाले हैं
मन खिड़की से उड़ना चाहे
सब दरवाज़ों पर ताले हैं
छेड़ छाड़ की वो बरसातें
वो आंखों में काटी रातें
फिर फिर याद बहुत आयेंगी
उन की छोटी छोटी बातें
सपना था इक टूट गया है
पीछे क्या कुछ छूट गया है
 

– राज जैन

चेहरे
 

रंगे पुते इतराते चेहरे..
झूठमूठ मुस्काते चेहरे.
भीतर से भयभीत त्रसित से
बाहर हंसते गाते चेहरे

चांद सांवरा भूरा ही हो
अनगढ़ और अधूरा ही हो
जाना पहचाना बरसों सा
मन को जिस पर आये भरोसा

माटी पर खुश गंध न डालें
चुनरी में पैबंद न डालें
स्वांग भरें ना सज्जनता का
मोल नहीं मांगें ममता का

मीठा सा तेज़ाब नहीं हों
खुदगर्ज़ी के ख्वाब नहीं हों
जैसे हों वैसे ही दीखें
सहज सरल हो जीना सीखें
 

– राज जैन

दिल की आवाज़
दिल की आवाज़ में दम हो
तो असर होता है।
जब भी दीदारे सनम हो
तो असर होता है।
अपने ग़म की
न दुआ मांग खुदा से बन्दे
कह किसी और के ग़म को
तो असर होता है

कोई तूफान
तो मुझको न डिगाए लेकिन
तेरी आंखें कभी नम हों
तो असर होता है।
इल्म तो सबको है
उतना ही दवा का ऐ हक़ीम
जिसके सीने में रहम हो
तो असर होता है।
सौ किताबें भी पढ़ो
और नसीहत भी सुनो
सामने नक्शे कदम हो
तो असर होता है।

– राज जैन

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