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क्या खोया
क्या पाया क्या खोया. क्या पाया खोने को था क्या. कुछ भी तो नहीं पाने को था सारा संसार फिर भी खोया है कुछ उधार लेकर दिल का चैन मन की शांति ढूंढता फिर रहा हूं गली गली चुकाना जो है उधार सूद समेत प्रश्न, क्या देखा है कभी झांक कर भीतर अन्तर्मन के। डरता हूँ भटक न जाऊं कहीं भूलभुलैया में मन की यह खोज है अनन्त क्योंकि खोया है उसे मैने अपने भीतर कहीं ढूंढता हूं बाहर यहां वहां शायद मैने पाया है यही आनंद ढूंढते रहने का उसे जो कभी खोया ही नहीं |
इंतजार
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