एक लपट उठी थी धरती के गर्भ से
आकाश को छू कर बरस पडी बूंदों में
सोख लीं वही बूंदें धरा ने
आया बसन्त तो
जन्म दिया पलाश के जलते फूलों को
एक बूंद अभागी
बरसी तो आकाश से
मगर न मिली धरा से
लिये अपना ज्वलन्त अस्तित्व
भटकी हवा में
कभी जलती दिये में
कभी बहती लहर में
जुगनु सी जलती बुझती बूंद
एक रात के चौथे प्रहर में
स्वाति नक्षत्र में
एक प्यासे चातक ने
मुख खोला ही था
बूंद के लाख मना करने पर भी
पी गया वह तृषित सा
जलती बूंद उतारता कैसे कंठ से?
जीवन भर
सुलगती रही बूंद अग्निशिखा सी
चातक के हृदय में !
कविताएँ
अग्निशिखा
आज का विचार
मिलनसार The new manager is having a very genial personality. नये मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है।
आज का शब्द
मिलनसार The new manager is having a very genial personality. नये मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है।