एक लपट उठी थी धरती के गर्भ से
आकाश को छू कर बरस पडी बूंदों में
सोख लीं वही बूंदें धरा ने
आया बसन्त तो
जन्म दिया पलाश के जलते फूलों को
एक बूंद अभागी
बरसी तो आकाश से
मगर न मिली धरा से
लिये अपना ज्वलन्त अस्तित्व
भटकी हवा में
कभी जलती दिये में
कभी बहती लहर में
जुगनु सी जलती बुझती बूंद
एक रात के चौथे प्रहर में
स्वाति नक्षत्र में
एक प्यासे चातक ने
मुख खोला ही था
बूंद के लाख मना करने पर भी
पी गया वह तृषित सा
जलती बूंद उतारता कैसे कंठ से?
जीवन भर
सुलगती रही बूंद अग्निशिखा सी
चातक के हृदय में !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

आज का विचार

द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।

आज का शब्द

द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.