अब मैं ने अपने ही विरुद्ध जाकर
यह मान लिया है कि
स्पष्टत: तुम्हें भूल जाऊंगी
तो
मेरे वक्ष में
एक समाधी की तरह
शीतल वेदना
ठहर जाएगी।
सूर्य ठण्डा होकर
मेरी आँखों में समा जाएगा
यूं भी संघर्ष और दृढ़ संयम से संचित
तुम्हारे भव्य व्यक्तित्व के कोष में
मेरा था भी क्या
सिवा उन शब्दों के
जो तुम गहन रात्रि में
या ब्रह्म मुहुर्त में
अजाने मेरे कान में कह जाते थे।
अज्ञानता में
मैं
उस पवित्र शिला से टकरा गई हूँ
जिस पर क्षण भर भी मैं टिक
कर सांस लेने योग्य नहीं।
अब मैं निरन्तर पश्चाताप के
दाह में जल रही हूँ।
कविताएँ
अपने ही विरूद्ध
आज का विचार
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।
आज का शब्द
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।