बरसातों को थाम कर वह‚
सृजन की बातें करता है।
मैं कानों में बबूल के
पीले गोल‚ मखमली फूल पहने
सुनती रहती हूं।
पंख लेकर गुदगुदाता है‚
मेरे ज़रा से उघड़े–खुले पैर।
मैं खो रही हूं…
उसकी जंगल सी आंखो में।
वह घने बरगद की
ज़मीन को छूती हुई शाख़ पर
बैठा हुआ‚
आंक रहा है रिश्ते को।
जंगल की फैली हथेलियों पर‚
रेखाओं सी पगडंडियां देख
बता रहा है…
शून्य है हमारे प्रेम का भविष्य।
मैं सोचती हूं‚
कितना भी शून्य क्यों न हो‚
आज जो रणथम्भौर के
इन घनेरे जंगलो से
हम दोनों ने जितने रंग बटोरे हैं
उतने क्या काफी न होंगे?
तुम्हारे–मेरे भविष्य के
बड़े शून्य को भरने के लिए।
कहां छोड़ आओगे
उस अलमस्त बाघिन की मादक स्मृति?
और वह लाल सर वाला कठफोड़वा‚
जो गर्म–नर्म दोपहरों में‚
हमारी कच्ची नींदे
ठक–ठक फोड़…
रेंगते अधूरे सपने चुगता था।
यहीं घास पर छोड़ जाओगे क्या
वह हंसी के ढेरों–ढेर नीले फूल?
भूल–भुलैय्या सी वह झूमर बावड़ी।
कितने ही शून्यों से भरा हो
हमारा भविष्य‚
मगर अतीत के गाढ़े–गाढ़े रंग
जीवन को कैसे फीका होने देंगे।
कविताएँ
भविष्य आंकते–आंकते
आज का विचार
एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
आज का शब्द
एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।