धूल धूसरित‚ पत्तों में छिपी
दम साधे‚ अपने न होने का अहसास करातीं
सम्मोहक और अतिरिक्त झिल्लियों वाली
वे दो आंखें सहज न थीं

वो आखें थी एक विषैले शिकारी की
वो आखें थी पैरों में रैंगने वाले
छुपकर आक्रमण करने वाले
छलावे की

बिलकुल मेल खाता था सारा कलेवर उसका
आस पास के निश्छल प्राकृतिक वातावरण से
सूखे पत्ते‚ हरी झाड़ियां‚ सुनहली धूप
मनमोहक रूमानी अंधेरा

जिससे अभिभूत मैं चहक रही थी मैना सी
अपना जंगल पहचानती सी
अनभिज्ञ उन दो आंखों से
चली गई थी करीब
पतझड़ के उन
लाल सुनहरे भूरे पत्तों के ढेर की ओर

पता भी नहीं चला कुछ कदम तो
कि मैं डसी गई हूँ
छली गई हूँ
उस विष में भी एक नशा था

मैं आज तक यकीन नहीं कर पाई हूँ
विष उतरने के बाद भी
आत्मा तक के संज्ञा शून्य होने के बाद भी
कि वह निश्छल सौंदर्य
एक जाल था
मेरी जीवन्तता निगलने का

बस इतना याद था
दो मोती सी आंखें पलटी थीं
झिल्लियों से निकल कर
घातक भूख और
क्रूरता से

बस वहीं पलट कर
रेंग गया था वह झाड़ियों में
नहीं दिखा कभी भी
आगे फिर
चाह कर भी!

चबा कर मेरी हंसी
निगल कर मेरे सुख
सोख कर प्यार पर मेरा यकीन
आत्मा तक स्पन्दनों से खाली कर गयीं
वो सम्मोहक आंखें !!

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आज का विचार

मिलनसार The new manager is having a very genial personality. नये मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है।

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मिलनसार The new manager is having a very genial personality. नये मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है।

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