क्यों लगता है औरत को
कि
वह नहीं सुनता उसकी
सालों से
एक मोटी दीवार के
पीछे से
बतियाती रही है वह
या फिर
जिसे वह पुकार कहती है
वह महज गूंज ही हो
उन आवारा सन्नाटों की
जिनसे वह दिन – दिन भर उलझी है
शायद वह नहीं जानती
कितना कान फाड़ू शोर है
घर से बाहर की दुनिया में
कितने प्रश्न गैरों के
कितनी क़ैफियतें … अपनों की
कितनी चीखें अजनबियों की
शायद पहुंचती ही न हो
उसकी वह धीमी सी पुकार
कानों में हमेशा के लिये
खिंच गई
शोर की मोटी दीवार के पार
कविताएँ
एक औरत की पुकार
आज का विचार
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
आज का शब्द
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।