ढूंढते रहे हैं मुझे
मेरी कहानियों के पात्रों में
वे
क्या इतना आसान है
किसी को ढूंढ लेना
यूं कहानियों के कच्चे चिट्ठों में ?
जब साथ रह कर
समूचा खुली किताब सा पढ़ कर
नहीं पहचान सकता
कोई किसी को
फिर ये कहानियां तो
एक जिग – सॉ पज़ल है
जिनके कई टुकड़े गुम हैं
या गलती से जा लगे हैं
किसी और ही कहानी में
कैसे ढूंढेंगे वे मुझे
कैसे पहचानेंगे मुझे
ज़िन्दगी के इन बेतरतीब टुकड़ों में
लगाते हैं कयास वे
मेरी इन कहानियों से
मेरे अवचेतन का…
बनाते हैं बातें कई तरह से
कुछ सम्वेदनशील लोग
ढूँढ निकालते हैं
अपने खोए हुए स्व के एक टुकड़े को
मेरी कहानियों में से
कोई मुझसे भी तो पूछे
ज़रा…
क्या हैं ये मेरी कहानियां
कहां हूँ इनमें मैं
कहां हैं इनमें वे स्वयं
मेरे लिये — ये कहानियाँ
ज़िन्दगी से काट – पीट कर
बनाया गया एक कोलाज हैं
बस और क्या?
क्यों ज़ाया करते हो वक्त
इनमें मुझे या अपने को
ढूंढने में
देखना है तो देखो
इस समूचे चित्र को
जो तुमसे – मुझसे परे
एक नई कहानी कहता है
जो समेटे है
तुम्हारे और मेरे अलावा
हमसे कई – कई लोगों के रंगों को
माना नहीं निकालती कोई हल
ये कहानियां
नहीं खोलती किसी की आंखे
मगर बहलाती हैं एक पल को
सहलाती हैं उस दर्द को
जो अवचेतन में सबके
एक सा ही है!!