एक धुँधली सी पोट्रेट है वह
एब्स्ट्रेक्ट पेन्टिंग सी
उसे ठीक–ठीक समझ पाना
कोई शीर्षक दे पाना
असंभव ही है.।
कुछ हिस्से बहुत स्पष्ट‚ खूबसूरत
चौंका देने की हद तक कलात्मक
कुछ बिखरे‚ उड़े–उड़े से
कहीं टूटी मुस्कान सी
तो
कहीं कहकहों से भरी–भरी
किसने बनाया उसे ऐसा
कोई नहीं जानता
जो भी उसे एक बार देखता है
उत्सुक हो फिर देखता है
पर उसे समझ पाने की उलझन से
सभी बचते हैं
कुछ खीजते हैं
कुछ ठिठक कर आगे बढ़ जाते हैं
वह भी मानिनी नहीं करती
आग्रह किसी से
कि उसे उठाया जाए
गर्द पौंछ किसी
कलावीथिका में लगाया जाए
कविताएँ
एक पोट्रेट
आज का विचार
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।
आज का शब्द
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।