बेलते समय चकले पर
घूमती है रोटी
जैसे घूमती है पृथ्वी धीरे-धीरे
बचपन से देख रहा हूं
ऐसा ही होता था , ऐसा ही हो रहा है
आटा गूंथ, उसकी लोई बना
बहुत तल्लीनता से मां बेलती थी
रोटी चकले पर
जैसे घूमती है अपनी धुरी पर
धीमे- धीमे धरती
घूमती थी मां की रोटी वैसे ही
अपनी एक खास मधुरिम लय में
मैंने देखा है
जो नहीं घूमती थी बेलते समय
तवे पर न तो वह खिलती थी
न लगती थी अच्छी खाने में
जरूरी है घूमना धरती का
रोटी का भी घूमना जरूरी है बेलते समय
अब भी चाहता है
हर कोई खाना
खिली- खिली रोटी ही
पृथ्वी पर बसी है पूरी दुनिया
ठहर गई पृथ्वी तो पूरी दुनिया ठहर जायेगी
इसलिए बहुत जरूरी है पृथ्वी का घूमना
जरूरी है बेलते समय
घूमना रोटी का भी
जरूरी यह भी है
कि घूमती हुई इस धरती पर
बची रहे रोटी बेलने की कला।
— अनिल विभाकर