उस क्षण,
न जाने क्यों ऐसी अनुभूति हुई
कि मेरा मन
एक विस्तृत भू-खण्ड है
मुझे भान ही कहां था
कि इस घास से भरे भू-खण्ड पर
कब से हजारों पक्षी
न जाने कैसे बीज चुग रहे है
अगर तुम न आते
और
इन अजाने- अदेखे
पक्षियों का झुण्ड शोर मचाकर
उड न गया होता
तो,
मैं अपने हरे भरे मन की
थाह कैसे पाती?
कविताएँ
हरे भरे मन की थाह
आज का विचार
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।
आज का शब्द
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।