एक ग्रामीण प्रणय गीत
बांध रहा है मेरे कानों को
वह दूर से तुम्हारी परछांई सा
कहीं से हवा में बह कर आया है
मेरे पहाडों वाले शहर से दूर हो तुम
चौडे पाट वाली नदी के शहर में
जानती हूं,
तुम नहीं बह पाओगे मुझ तक
मैं भी कहां इतना उड पाऊंगी?
फिर भी, क्यों तुम मेरे लिए
पलाश के फूलों और
जंगली बेरों की
रखवाली किया करते हो?
मै भी,
सारस के घोंसले वाले
खेतों में प्रतीक्षारत
स्वयं को गीत बुनने से
कहां रोक सकी हूं
फिर भी
इस रुख बदलती हवा से
यहीं कहती हूं
हृदय को जीवन से जोडने को
इतना भी क्या कम है!
कविताएँ
इतना भी क्या कम है?
आज का विचार
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।
आज का शब्द
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।