आज फिर गांव से
गुज़री रेल
रेल की छुक छुक से
मटर के खेत में लोट पोट होती
चिड़ियों का झुण्ड फुर्र से उड़ा
चौंक कर खड़े हो गये
झरबेरी के बेर तोड़ते ग्रामीण बच्चे

आंखों पर हाथ रख मिचमिचा कर आंखें
वृद्ध किसान देखने लगा
पटरियों पर सरपट दौड़ती
उम्र की लम्बी रेल को
खेत की अनजुती बांझ मिट्टी में घुलता रहा
उर्वर लवणों में बदलता मरी गाय का पिंजर
देता हुआ सार्थकता मौत को
कहीं घनेरी अमराई में
ठिठकी एक पीली चुनरी में दुबकी हंसी
बिछे हुए पुआल पर मुखर हुआ
दो भुजाओं का स्नेहिल मगर ढीठ आग्रह
तभी शुरु हो गयी बूंदा बांदी
पकी अरहर के खेतों में
मर्दाना – जनाना कर्मठ हाथों में
एकसाथ‚ अविराम चलती हंसियां
एक पल को थमीं‚ फिर चल पड़ीं
वहीं करीब खड़ा रहा मुंह बनाये
तोतों के झुण्ड को भगाने से असफल सा
फटे कपड़ो व मटके के सर वाला
बुद्धू सा बिजूका
साल भर गोबर इकट्ठा कर थापे गये
अपने उपलों के ढेर को सहेजती
चमकीं बुढ़िया की आंखें
इस साल ईंधन की कमी नहीं
चाहे धान कम हुआ हो…
छोटी सी फुलचुकी फुदकती रही
करील की झाड़ियों के
नारंगी फूलों का रस सोखती
बेखबर बगुले सहेजते रहे तिनके
बबूल के पेड़ों पर
नदी का दरपण धुंधला लगा
काई तो इस बरसात के बाद
बह जायेगी
पॉलीथीन की नीली गुलाबी परत
इस नदी को खा जायेगी
कल फिर गांव से गुज़रेगी रेल !!

One Reply to “Kal fir gaaavn se gujregi rail”

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आज का विचार

मिलनसार The new manager is having a very genial personality. नये मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है।

आज का शब्द

मिलनसार The new manager is having a very genial personality. नये मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है।

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