शादी के अगले रोज़ ही
वह शामिल हो गयी जमात में
खांटी औरत घरेलू बन कर
फंस गयी बिसात में।
उसी घर और बिस्तर पर
पुरुष ने भी बिताया समय
फिर भी किसी ने उसे नहीं कहा
खांटी घरेलू मर्द।
कविताएँ
खांटी घरेलू
आज का विचार
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
आज का शब्द
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।