” तुम्हें जानने की धुन ही मुझे वहाँ ले गई थी‚
जिसके पार मैं ने सोचा‚ तुम हो सकते थे। मैं ने
तुम्हें उन सारी संभावित जगहों पर खोजा जहाँ
तुम्हारे होने या न होने की ज़रा भी संभावना थी।
उन परछाइयों में खोजा जो घर और बाहर का
एक अनिश्चित सफर तय करती हैं। उन सम्बन्धों में
खोजा जहाँ तुम हो सकते थे हुए या उन्हें छुए बगैर…
पर वहा सिर्फ तुम्हारे कपड़ों की गंध थी।
मैंने तुम्हें उन सारी वर्जनाओं में ढूँढा‚ जहाँ कभी कभी
तुम वापस आने के रास्ते ढूँढा करते थे।
कहीं कोई नहीं है। सब अपना अपना पता दूसरे
से पूछ रहे हैं। सबके हाथ में अपने नाम की पर्चियां हैं‚
जिन पर गलत पते लिखे हुए हैं।
क्या हर पते पर जाये बगैर तुम्हें नहीं खोजा जा
सकता”
कविताएँ
खोज
आज का विचार
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
आज का शब्द
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।