क्या पेड-पौधों
जंगलो-झरनों
तालाबों-जलपंखियों
खेतो-सारसों
का अर्थ
तुम्हारे लिए आज भी है
मुझसे मिलता जुलता है?
लेकिन आज मैं,
स्वयं को उस सब से जोड नहीं पाती
समाज के तंग गलियारों में
एक प्रतिमा बन खडी हूं
उसी जगह पर
जो मेरे लिए बना दी गई है
वहां से हिलना भी मना है
मेरी डोर किसी के हाथ है
वह जो उनमुक्त है
खुली हवा में सांस लेने के लिए
दोस्त बनाने के लिए
कहीं भी,
कभी भी दायित्व उतार फेंकने के लिए
लेकिन मैं फिर भी
कोशिश करके जोडती हूं
स्वयं को घर से
बाहर लगी अपनी छोटी सी फुलवारी से
कविताएँ
क्या आज भी ?
आज का विचार
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।
आज का शब्द
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।