नहीं, मैं तुम्हारे प्याले से नहीं पियूंगी
चाहे प्यास घोंट दे मेरा गला
और मैं बिखर जाऊं जर्रा जर्रा
मैं नहीं उगूंगी तुम्हारी जमीन पर
मुझे नहीं चाहिये
तुमसे छन कर आती
हवा और धूप
मैंने सुना है उनकी नींदों का रोना
जिन्होंने अपने सपने
गिरवी रख दिये हैं
और अब
उनकी सांसों से
मरे हुए सपनों की गंध आती है.
मुझे चाहिये अपनी नींद
भूख और प्यास
मुझे चाहिये अपने आटे की
गुंथी हुई रोटी
मैं अपने जिस्म पर
अपनी ईच्छाओं की रोटी
सेंकना चाहती हूँ
अपनी मर्जी से
अपने लिये उगना
अपने लिये झरना चाहती हूँ
मुझे नहीं करनी वफादारी
तुम्हारी रोटियों की
रखवाली तुम्हारे घरों की
तुम्हारी मिट्टी की, तुम्हारी जडों की
जिनसे आती है मेरे
पसीने और लहू की बू
मैं नकारती हूँ वह वृक्ष
जिसके फूलों पर कोई इख्तियार नहीं मेरा
मैं छोडती हूँ तुम्हें
तुम्हारे फैलाए समस्त जाल के साथ
मैं होना चाहती हूँ
अपनी गंध से परिपूर्ण अपने लिये
मैं अपना आकाश
अपनी धरती चाहती हूँ
मैं अपनी होना चाहती हूँ.
कविताएँ
मैं अपनी होना चाहती हूँ
आज का विचार
मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।
आज का शब्द
मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।