फिर बासी आँसुओं की फुहार में नहा
आई पुजारिन,
सवेरे-सवेरे—
हरसिंगार तले!
पूजा के साज सजे,
मंदिर की सीढ़ियों पर
पदचाप बजे!
देवता जगे,
(होश, देवता का आज दुरुस्त हुआ
सवेरे-सवेरे!)
रिक्त पद्म आसन!
पाद पद्म में झुकती गर्दन को,
बाहुओं में समेटे,
बोल सके!
“पूजा हो चुकी तुम्हारी—पहले ही
सवेरे-सवेरे!
हरसिंगार तले!”
तुम पर निवेदित इन फूलों से पूछो!
घुँघराली लटों की लहरों में
क़ैद थर-थर काँप रहे
दो जीवित फूल!
देवि!
…निवेदन है!
निवेदन है!