मैं ने जिसे पहली बार छुआ था
वह था रेवड़ से बिछड़ा
मासूम मेमना‚
आज जिसे छूना चाहती हूँ
उसने उगा लिये हैं काँटे अपनी देह पर
सेही की तरह
जानती थी अपनी प्रकृति
कि बर्फ हूँ‚
जमती हूँ‚ पिघलती हूँ
वाष्प भी हो जाती हूँ
पर ये नहीं जानती थी
कि तुम चट्टान हो
जो न जमती है न पिघलती है
निश्चल‚ अस्पंदित टिकी रहती है
चाहे भावुकता का समुद्र ही
लाख सर क्यों न पटके
भान था मुझे कि
अथाह है मेरी जीवंतता का समुद्र
पर तुम्हारी शुष्कता के रेगिस्तान की
ज़रा भी थाह न थी
कि सोख लोगे मेरे समुद्र की
एक–एक बूँद।
कविताएँ
प्रकृति अपनी–अपनी
आज का विचार
द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।
आज का शब्द
द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।