लो!
इतने व्याख्यायित प्रेम की
एक ओर परिभाषा लिये
मेरे सामने आ खड़ी हुई हो तुम।
प्रेम‚ नदी–समुद्र
धरती–आकाश
लता–वृक्ष
नहीं
तो?
तुम ही कहो
तुम्हारा प्रेम है क्या?
देह सिर्फ देह की
आत्मा बस आत्मा की
कोई उपमा‚ उपमान
सम्बंध चस्पां किये बगैर!
स्त्री–पुरूष के बीच
देह से आत्मा में
आत्मा से देह में
बहता रहता है प्रेम
क्यों उलझाती हो?
बहता है तो झरना है
रहता है तो एक मोती है
ये तुम्हारा प्रेम है क्या?
तुम सामने हो तो एक मीठी तकरार
तुम दूर हो तो एक आह्वान है
प्रेम प्रतीक्षा है।
प्रेम पीड़ा है।
प्रेम मोह है।
तुम्हारी देह पर मेरे
मेरी देह पर तुम्हारे
छूटे स्पर्श प्रेम हैं?
ये उत्कट कामना प्रेम है?
तुम्हारे बिन अधूरा होना प्रेम है?
तो तुम्हारे साथ की सम्पूर्णता फिर क्या है?
अब मानो न मानो‚
हमारा एक दूसरे का पूरक होना ही प्रेम है।
कविताएँ
प्रेम
आज का विचार
समानता Women’s Day advocates gender parity. महिला दिवस लैंगिक समानता की वकालत करता है।
आज का शब्द
समानता Women’s Day advocates gender parity. महिला दिवस लैंगिक समानता की वकालत करता है।