क्या क्या विस्मृत किये बैठे हो तुम
भूल गये पलाश के फाल्गुनी रंग
चटख धूप में मुस्कुराते अमलताश
और टूटी चौखट वाली खिड़की पर
चढ़ी वो चमेली और उसकी मादक गंध?
पकते सुनहले गेहूं के खेत
वह नहर जिसे
मुझे गोद में उठा कर पार कराते थे
सिके भुट्टों की भूख जगाती सौंधी खुश्बू?
मुझसे तो कुछ भी नहीं भूला गया
न वो किले की टूटी दीवार पर
साथ बैठ गन्ने खाना
न वो सावन के दिनों में
लाल सुर्ख वीरवधूटियों को घास से चुन लाना
कैसे भूल जाती वो होली के रंग
साथ साथ बढ़ती बेल सी
हमारी कच्ची दूधिया उमर
और आर्थिक अभावों की कठोर सतहें
बड़ी संजीदगी से पढ़ते थे तुम
मैं वही आंगन में तुम्हारी बहनों के साथ
रस्सा टापती‚ झूला झूलती
भरसक ध्यान खींचती थी तुम्हारा
खिलखिला कर
अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाती तुम्हें
तुम पर धुन सवार थी
अभाव काट बड़ा बनने की
क्यों
जानकर अनजान रहे मेरे प्रेम
और उठान भरती देह से?
मैं क्यों रातों तुम्हें
अपनी सांसों में पाती थी?
विधना ने तो रचा ही था बिछोह हमारे मस्तकों पर‚
तुमने भी वही दिन चुना परदेस जाने का
जिस दिन मेरे हाथों में
पराई मेंहदी रची थी सगाई की
मैं आज तक न जान सकी
कि तुम्हारे बड़ा बनने में
मेरा क्या कुछ टूट कर बिखर गया
जिसे आज भी सालों बाद
भरी पूरी गृहस्थी का सुख न जोड़ सका
सच कहना याद आती है न …
मेरी नहीं
उन पकते खेतों की…
कविताएँ
सच कहना …
आज का विचार
मिलनसार The new manager is having a very genial personality. नये मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है।
आज का शब्द
मिलनसार The new manager is having a very genial personality. नये मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार है।