डूब जाऊंगी मैं अपने ही पानी में
एक दिन
तुम्हारे बारे में कुछ न सोचती हुई
एक दिन अंत होगा
सभी शब्दों का और
सघन खामोशी छा जाएगी अंदर
एक दिन पूछा जाएगा
किसी स्त्री से
किसी पुरुष के बारे में
वह अनभिज्ञता से सर हिला देगी
पूछा जाएगा पुरुष से
एक दिन
वह खामोश अपने में डूब जाएगा
संभावनाएं डूब जाएंगी उस खामोशी में
जिस ख़ामोशी में डूबी है पृथ्वी
मैं क्यूं कोई सम्वाद नहीं बना पा रही
तुमसे…
अब भी।
कविताएँ
संवादहीनता
आज का विचार
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
आज का शब्द
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।