कभी – कभी
अनायास
तुम्हारी बगल में लेटे – लेटे
अपने आप से बाहर निकल आती हूँ मैं
खोजती हूँ मनचाहा एकान्त
बरसों से पानी में डूबी
— एक चट्टान
चट्टान की पथरीली परतों में दबा
एक सुनहरी फर्न का
— जीवाश्म
टटोलती हूँ
काई और फिसलन भरी
किसी सीढ़ी का अंतिम छोर
पहुंचता हो जो
चेतना की महीन सुरंगों से होकर
अवचेतन की ओर
निकल आती हूँ फन्तासियों के जंगल में
तोड़ लेती हूँ वही सुनहरी फर्न
जो आज दुर्लभतम है पृथ्वी पर
निर्वसित हो देह से
अनावृत हुई आत्मा पर
फिराती हूँ यह सपनीली फर्न
भटक कर
लौट आती हूँ चुपचाप
लेट जाती हूँ फिर
बगल में तुम्हारी
नींद में भी तुम बेचैन हो
एक असुरक्षा डरा रही है तुम्हें
मेरे यायावर मन की!
कविताएँ
सुनहरी फर्न का जीवाश्म
आज का विचार
द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।
आज का शब्द
द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।