दूर कहीं कँटीली झाड़ियों के पीछे
ना मालूम कब से बसी कन्दरा में
सुबक रही है एक स्त्री
उसी के गर्भ में जा रहे हैं उसके आँसू
अपनी नई पीढ़ी को देने के लिए
बूढ़ी दाई कहती है,
यह परम्परा ना जाने कब से चली आ रही है
उस स्त्री के दबे हाथ
मिट्टी से बाहर आकर
कथक का ह्स्तसंचालन कर रहे हैं
कलाप्रेमी उसका रस ले रहे हैं
साँस लेने को तड़प रही है
मिट्टी में लथ – पथ उसकी नाभि
उसके शरीर के बालों ने
फैला दी हैं मिट्टी में अपनी जड़ें
रूप – लावण्य की फसल पैदा करने के लिए
काटो — काटो
जल्दी काटो इस फसल को
कहीं यहाँ सूख न जाए
बड़े जतन से
धैर्य और भावनाऑं के
लोहे को प्रशंसा की आग में पिघलाकर
तैयार किए जाते हैं हंसिये
फसल काटने के लिए
भिड़ गए हैं युद्ध –स्तर पर
सभी धर्म… कयदे – कानून
यहाँ तक कि प्रेम भी
कहीं फसल बरबाद न हो जाए
चुपचाप कटती रहती है स्त्री
प्रेम में, गृहस्थी में
और समय में
किसी को पता नहीं चलता
उसका बीतना
फिर – फिर जन्मते हुए
प्रतिपल बोई जाती है उसकी फसल
प्रतिपल काटने के लिए
जमींदार भी बन गए हैं मजदूर
यह सबसे बड़ा समाचार
सुनाना नहीं चाहता कोई भी
स्त्री इसके सुनने के पहले ही
कर लेती है आत्महत्या
बिना यह जाने
उसकी फसल उसी ने काट ली है
काटने की मेहनत किए बिना
समूची दुनिया
उसका स्वाद लेती रही है
कबीर को होना था स्त्री
कुछ और लिखने के लिए
मीरा तो दीवानी ही मर गई
पुल्लिंग है, शब्द का लिंग भी
लपलपाते विष – वीर्य को समाते हुए
आओ…खेलो मुझसे
आओ…
रचो मेरे साथ सारे उपनिषद….पुराण
नित नई महान रचनाएं और आचार – संहिताएं
होगा तो वही जो चला आ रहा है
इस सृष्टी की शुरुआत से
बरगद के बूढे पेड़ पर बैठकर
कोयल कब से यहाँ गीत सुना रही है
ऎसा कोई नहीं
जो उसकी लय को पकड़ पाए
कविताएँ
स्त्री का आदिम गीत
आज का विचार
द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।
आज का शब्द
द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।