यह
मेरी देह वल्लरी
अपनी ही कमनीयता की
और
तुम्हारे एकाधिकार की
बेड़ियों में जकड़ी
यह नितान्त मेरी होकर भी
मेरी नहीं
मुझे नहीं अधिकार कि
आवरण हीन हो
प््राकृतिस्थ हो
इसे निहारुं
सराहूं
या बढ़ा दूं
तुम्हारी बांधी बेड़ियों से
जकड़े हाथ
मनचाहे
नितान्त वैयक्तिक
सुख की ओरॐ
यह सांचे में ढली देह
मेरी होकर भी तो
महज तुम्हारे सुख के लिये बनी है
पर
बस तभी तक ही तो
इससे बंधा है
तुम्हारा सुख भी
जब तक यौवन है
उसके बाद
यह जर्जर खोखली देह
और इसमें जड़ी बेड़ियां
मेरी हो जाएंगी
मैं स्वतन्त्र हो जाऊंगी
तुमसे‚ तुम्हारे प्रेम के ज्वार से
और कामनाओं से।
मगर तब
जब दम तोड़ देंगी
मेरी अपनी आकांक्षाएंॐ
अपने यौवन के आवेग
और सरस हृदय
की ओर से
मैं ने आंखें बन्द कर ली हैं
ढक लिया है अपना
सौन्दर्य के उपमानों को लजाता
चेहरा
डरती जो हूँ कि
कहीं
मेरी आखों में झिलमिलाता
अपनी स्वतन्त्रता का ढीठ स्वप्न
तुम पर व्यक्त न हो जाये
और अपनी हार से आक्रामक होकर
तुम
जकड़ बैठो
मुझे
एक और बेड़ी से ….
कविताएँ
स्वतन्त्रता का ढीठ स्वप्न
आज का विचार
मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।
आज का शब्द
मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।