कामना का यह अंतिम प्रहार
प्रेम की यह आख़िरी तड़प
और एक साथ इतनी बिजलियों का गिरना
अब आग नहीं
आंच की खुमारी है
स्याह पर्दे पर
फुसफुसाहट की इबारत में
लिखता है वह
एक पुरातन पुरुष – प्रश्न
कैसा लगा ?
कि जैसे टूटता है जादू
अचानक कम होने लगता है
कमरे का तापमान
सिहरते हुए वह
चादर सिर तक खींचती हुई
पूछना चाहती है
तुम प्रेम कर रहे थे
या परीक्षा दे रहे थे
समर्पण में विभोर थे
या अवरूद्घ थे तनाव में
लेकिन वह कुछ नहीं कहती
और वह उसके मौन को
अपनी तरह से
बूझता रहता है
कविताएँ
उत्तर - प्रश्न
आज का विचार
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
आज का शब्द
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।