मैं वह पल … वह पल
जीना चाहती हूँ
जहाँ काम नहीं देंगे शब्द
दूर तक फैली होगी
तुम्हारी देह की खुश्बू
भूल जाऊंगी मैं सब कुछ
छूटा हुआ‚
सिर्फ खामोशी होगी
कुछ तप्त सांसों के बीच
सितारों के मेले में हम
ढूंढ ही लेंगे आखिरकार
उस गुम हुए सितारे को
गुम हुई धुन लौटेगी
उस नाद में
चौंक कर आंख खोलेगा शेषनाग
और संभाल ही लेगा डगमगाती पृथ्वी को
ज़िन्दगी का वह क्षण जो
कांपता हुआ फैल जायेगा पूरी पृथ्वी पर
और ढंक ही लेगा मुझे
कोहरा जिस तरह घाटियों को
बर्फ पहाड़ियों को
नदियां दूर तक फैली रेत को
और तुम्हारी बांहें
बिखर रहे इस जिस्म को।
कविताएँ
वह पल
आज का विचार
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
आज का शब्द
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।