समुंदर गहराई नापता है
समुंदर दूरियां भी नापता है
ओ मेरे देश
तुझे छोड़ जितना
दूर आ गया हूं मै
उतना ही पास आ गया हूं मैं
वही सूरतें‚ वही लोग
वही शोक‚ वही रोग
सड़कों को धड़ाधड़ नापती
वैसी ही चमचमाती गाड़ियां
वैसी ही‚ सौंदर्य को लपेटे
खूबसूरत साड़ियां
देखो तो ज़रा खुली हुई खिड़की से
शरमाती दुल्हन–सा
दिल्ली का चॉद
झांक रहा है त्रिनिदाद के आकाश में
अरी ओ नन्हीं चिड़िया
भाषा की दीवारों को तोड़
तूने यह क्या गाया
दिल के तारों ने आवाज़ दी
यही‚ हां यही गीत तो सुनकर
मैं अभी–अभी हूं आया
हवा की सांसों के संगीत को
अपन हिस्सा बनाते ओ पेड़ों
कुछ भी तो नहीं बदला है तुम्हारा
सच कुछ भी नहीं बदला है
वही पेड़‚ वही चिड़िया
वही लोग‚ वही गाड़ियां
वही चांद‚ वही आकाश
सच कुछ भी नहीं बदला है
मेरे देश
पर वो गंध कहां है
वो जो तेरी मिट्टी से आती है
बहुत ढूंढता हूं
मां
तेरी गोद नहीं मिल पाती है
कविताएँ
वो गंध कहां है
आज का विचार
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
आज का शब्द
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।