एक आहत
नाराज़‚ क्षुब्ध बच्चे की तरह
एक हाथ में कैंची
और
एक हाथ में
सम्बन्धों के उलझे धागे लिये बैठी हूँ,
आंख दिखा रहा है आकाश
मनुहार करती धरा
थामे है हाथ
मुझे ये ज़िद है कि
न सुलझे अगर ये
सम्बन्ध
तो काट के तार तार
सुलझा ही लूंगी
इनका उलझाव!
कविताएँ
ज़िद
आज का विचार
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
आज का शब्द
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।