तुमने कभी इलाहाबाद की गर्मियां नहीं झेलीं…शुक्र है — पर हाँ‚ तुमने दोपहर के सन्नाटे को इलाहाबाद की सड़कों पर बजते भी नहीं सुनाॐ ए।जी। ऑफिस के आस पास नीम व पीपल के घने पेड़ों तले ठहरी दफ्तरी भीड़ को भी नहीं देखा। प्रयाग संगीत समिति के लॉन की खा.मोशी को नहीं सुना। शाम को वहाँ से उठती मौसिकी की वह लहर भी नहीं सुनी जो लहू में राग बागेश्वरी बन कर उतर जाती है। युनिवर्सिटी रोड की दुकानों में गर्मी की छुट्टी में बचे हुए विद्यार्थी किताबें पलटते हैं। आई। ए। एस। का इम्तिहान सिर पर खड़ा है। अमरनाथ झा हॉस्टल के लड़के हॉकी खेल रहे हैं। चारों ओर गुलमोहर ने आग सी लगा दी है। सर्किट हाउस के अमलतास जर्द फूलों के घुंघरुओं से सज गये हैं। अशोक के हरे भरे पेड़ बीच बीच में खड़े हैं अटल।

हिन्दुस्तानी अकादमी में आज साहित्यिक गोष्ठी है – अश्क‚ शेखर जोशी‚ लक्ष्मीकांत वर्मा‚ अमरकांत‚ अमृतराय‚ मार्कण्डेय‚ रवीन्द्र कालिया‚ ममता कालिया‚ दूधनाथ सिंह‚ नीलाभ गर्मागर्म बहस में उलझे पड़े हैं।

हाईकोर्ट बन्द है.। स्वराज भवन में बच्चे छुट्टियों का सदुपयोग कर रहे हैं — पेन्टिंग टीचर बच्चों में छुपा कलाकार उभार रही है। दूसरे सेक्शन में कोई कत्थक कर रहा है…झन…झन…झन…थप…थप…थप …। बिजली गुल। पानी गायब — सरोजिनी नायडू छात्रावास की लड़कियां सुराहियां लेकर हैण्डपम्प के पास दौड़ लगा रही हैं…तबाही…तबाही।

लू के झक्कड़ पर झक्कड़ — दूर दूर तक धूल के बगूले नाच रहे हैं — अगिया बेताल। कोई ठण्डाई घोल रहा है रेॐ कोयल कूके चली जाती है। आम की डालियां फलों के बोझ से लदी खड़ी हैं। कटरा बाज़ार में आज लंगड़ा बीस रुपये किलो बिका।

लोकनाथ की गली में लस्सी के कुल्हड़ बार बार खाली हो रहे हैं — मिट्टी की सौंधी महक। हरी की चटपटी नमकीन‚ तीखा स्वाद‚ हर ज़ुबान पर। क्या देश‚ क्या विदेश — जो गया मज़ा लेकर गया। ममफोर्ड गंज के फव्वारे वाला चौराहा चिलचिलाती धूप में फुहार फेंक रहा है। खबर गर्म है‚ हिन्दी साहित्य सम्मेलन में महादेवी वर्मा जी के आने की। धवल श्वेत सूती धोती में हंसिनी सी विराजमान। प््रायाग महिला विद्यापीठ में नारी शिक्षा की समस्याओं से जूझतीं महादेवी। ठाकुरद्वारे पर सीस नवाती एक नारी। रसूलाबाद घाट पर अंतिम संस्कार करती अबला।

नवधनाढ्य का बसता रूप — करैली इलाहाबाद का दिल – अहियापुर। सटे सटे मकान‚ कई मकानों के ऊपरी हिस्सों से दूसरे मकानों को जोड़ते पुल। पड़ौसी के घर जब भी जी चाहे जाइए‚ नीचे उतरने की भी जहमत न कीजिये। आइए‚ दिल के किवाड़ खुद ब खुद खुल जाएंगे। गहरी दोस्तियां – बेशुमार मोहब्बतें‚ कभी न खत्म होने वाले सम्वाद।. बूढ़ों‚ बच्चों और औरतों की सुरक्षा का अहसास — छन्न गुरु का इलाका‚ वहाँ डर का क्या काम? अहियापुर का फकीर — मदन मोहन मालवीय‚ समूचे उत्तर प्रदेश को शिक्षित करने वाला पीरॐ

मुहर्रम की दस तारीख है — दरियाबाद – रानीमण्डी से निकलते ताजियों के जुलूस मातम की आवाज़ें – “कर्बला में हुसैन प्यासे हैं‚ सैय्यदे मशरिक़ैन प्यासे हैं…” – ठण्डी बर्फ की सबीलें — प्यासी मातमी अंजुमनों को शर्बत पिलवाते बूढ़े पण्डित रामदासॐ बुर्कों के पीछे से झांकती शब–बेदारी से थकी आंखें।

जार्ज टाउन के बड़े बड़े बंग्लों में अथाह सन्नाटा…। लॉन में माली सिर झुकाए कोचिया की पौध रोप रहा है। म्योर सेंट्रल कॉलेज का भव्य गुंबद – विजयनगरम हॉल में शाम को धर्मवीर भारती का ‘अंधायुग’ खेला जाएगा। गंगा की कछार — तरबूज‚ खरबूजा‚ हरी ककड़ी लदे ऊंटों की कतार। कजरा – हरा ऊपर से सख्त अंदर से नर्म दिल वाला…तुम्हारी तरह। बांस मण्डी – इमली के छायादार दरख्.तों की पत्तियां झिलमिल झिलमिल…हवा की सिंफनी बज रही है…झूम झूम…कन्हैया — हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी का लहरा— उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के घने बरगद तले शांति हीरानन्द‚ बेगम अख्.तर की आवाज़ में … छा रही काली घटा – जिया मोरा लहराय है …अलाप रही है। पूरब से काली घटा उमड़ रही है — आली उमड़ घन घुमड़ बरसे री… मियां मल्हार की इठलाती हुई मध्य लय शुरु हुई – जिस्म में हल्की सी सिहरन – ऊंची मुंडे से एक कबूतर उड़ा।

रुकने का नाम नहीं ले रही बरखा — चारों ओर पानी रे पानी… गंगाजल…यमुनाजल…सब जल थल। सड़कें तालाब बनीं …नदी सागर। राजापुर की आधी बस्ती जलमग्न। गंगा का पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है। सुर्ख चमकते अम्गारों पर भुट्टे भुन रहे हैं। अल्लापुर में घुटनों पानी जमा है। बाज़ार में फूट ककड़ी की भरमार।

बरसाती ओढ़े साइकिल सवार — आधे आधे कमर तक पानी में डूबे — गवर्नमेन्ट इंटर कॉलेज के पास वाले पुल के नीचे से निकल रहे हैं। आगे मुट्ठी गंज है‚ फिर माया प्रेस की माया। आगे बढ़िये तो हटिया – एक सीधी सड़क जो कहीं से नहीं मुड़ती‚ फिर भी दो मुख्.तलिफ संस्कृतियों को जोड़ती है। एक सिरे पर मामूजान खड़े हैं मिलाद शरीफ का जश्न — तबर्रुक की लूट। दूसरे पे सिर ढाके ताई — बूढ़े पीपल के इर्द गिर्द मन्नत के धागे लपेटती है। इधर से जो भी गु.ज़रा दिलों को जोड़ता ग़ुज़रा —

” ताई पांव लागन “
” मामू सलाम”

ये अनोखे ताल्लुकात‚ सतरंगे रंगों में सरोबार।

पानी की रिमझिम फिर शुरुॐ पानी के भंवर बन रहे हैं। कुछ मासूम बच्चे काग़ज़ की नाव तैरा रहे हैं — न जाने किस की नाव पार लगेगी। किसकी भंवर में डूबेगी। ‘ नागवासुकी मंदिर’ के कदमों को गंगाजल चूम रहा है। डॉ। जगदीश गुप्त तूलिका लिये चित्रों में रंग भर रहे हैं। ‘ अनहद गरजै ‘ शिवकुटी में शिवजी हंसे — नारायणी आश्रम में महिला सन्यासिनियों का सफल शासन‚ इंजीनियरिंग कॉलेज के लड़कों का मन भक्ति में लग रहा है। संध्या पूजा में उपस्थित अनिवार्य।

खुसरो बाग के पुल के पास मद्रास कैफे में एक जोड़ा सिर जोड़े‚ भीगा…सिकुड़ा…सकुचाया बैठा है। फागुन की भीगी मदमस्त हवा लहरा रही है…। श्वेत – नीली दो सखियां हंसती हुई पहाड़ पर से उतरीं‚ तीसरी सखि घूंघट की ओट में छिपी बैठी है – उजली सरस्वती — तीनों सखियों ने आपस में गलबहियां डाल दीं …बन गया संगम … आत्मा का मिलनॐ यहीं कहीं हरिवंश राय ‘बच्चन’ की कविता ‘पगला मल्लाह’ के बोल डोल रहे हैं।

डोंगा डोले
नित गंग जमुन के तीर ॐ
आया डोला ्र उड़न खतोला
एक परी परदे से निकली पहने पचरंगी चीर
डोंगा डोले ॐ
नाव विराजी ्र केवट राजी
डोंगा डोले…ॐ

वही चेहरे‚ वही अपने पराये‚ सितारों की गर्दिश‚ मृगतृष्णा – अहियापुर की गलियां – भूलभुलैया। एक लड़की भटकती सी‚ तेज़ बौछार से बचने की नाकाम कोशिश करती‚ दुपट्टे से सिर छुपाती भागती। एक चरमराता दरवाज़ा खुला – वृद्ध आवाज़ का बुलावा आया — ” ए‚ लड़कीॐ चल अन्दर आ जाॐ” लड़की की भीगी आंखों में हैरत…बूढ़ी आंखों में निश्छल स्नेह‚ पल भर में एक रिश्ता सा बन गया। यही है इलाहाबाद। शर्माती हुई लड़की ने टूटी दहलीज़ पर पांव धरा‚ वृद्ध ने भीतर गुहार लगाई —” सुनत थियो‚ ई बहुत भीग गई है‚ भई एक चाय देयो।”

फिजां धुआं धुंआॐ मंटो पार्क – जमुना के पुल पर कोहरे के बादल इकट्ठा हैंॐ माघ की कडा.केदार ठण्डॐ लिहाफ से बाहर निकलने की हिम्मत नहींॐ नलों का पानी सर्दॐ दातों का संगीत बज रहा है। सिविल लाईन्स कॉफी हाउस में कॉफी के प्याले खनक रहे हैं। साज़िशें जाग रही हैं। षड्यंत्रकारियों का एक अड्डा यह भी। साहित्यकारों – चित्रकारों की घातें बातें – चक्रव्यूहॐ अहंकार पर चोट दर चोट। खण्डित होता स्वाभिमानॐ सवालों के नश्तर। लगता है‚ फिर कोई जीतेन्द्र दीवाना हुआ…।

रात बर्फ सी पिघल रही है। गर्वनमेन्ट प्रेस के विशाल मैदान में अलाव जल रहे हैं। दर्शक जेबों में हाथ डाले – नुक्कड़ नाटक देखने में मगनॐ आनन्द भवन सुर्ख गुलाबों से महक रहा है। कोई कथा बांच रहा है — ‘ ये खत जवाहरलाल नेहरू ने इंदिरा बेटी को लिखा था।’ स्याह हाशिये पर कुछ चीजें रह गई — ‘स्वीट पी’ की मीठी खुश्बू न जाने किसकी याद बार बार दिला देती है — बकौल फिराक़

‘ शाम थी धुंआ धुआं‚ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियां‚ याद सी आके रह गईं…याद सी आके रह गईं…ॐ’

गंगा किनारे अकबर का किला उदास‚ तन्हाॐ बीते दिनों को याद कर रहा है। आज मंगलवार है — लेटे हनुमान जी के मन्दिर में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है। कहीं कोई साधु धूनी रमा रहा है। अताले की मस्जिद में मगरिब की अज़ान हो चुकी। सफेद पत्थर गिरजाघर की घंटियां बजती रहीं। म्योराबाद के घर घर में लाल सितारा दूर से चमकता नज़र आ रहा है। ईसामसीह का जन्मदिन धूमधाम से मन रहा है। केक कट रहे हैं। हर तरफ मोमबत्तियों का सुनहरा उजाला। गिटार पर एक धुन थिरक रही है।

आज की ताजा खबरॐ पत्रिका मार्ग पर कुछ पत्रकार हड़ताल पर बैठे हैं। सी।एम।पी। कॉलेज में झगड़ा – गोली चल गई। शम्सुर्रहमान फारूखी का ‘ शबखूं’ प्रेस में है। अकबर इलाहाबादी की कब्र पर अब कोई फातिहा नहीं पढ़ताॐ

खुसरो बाग में अमरूदों के दरख्.तों के पीछे लाल लाल गालों वाले शरीर बच्चों का झुण्ड झांक रहा है–’ आओ आओ‚ आओॐ ‘

जाड़ों का लुत्फॐ कादिर हलवाई का लोज़ बादाम‚ जाफरानी बर्फी‚ सुलाकी की जलेबी।

संगम तटॐ झिलमिलाती लहरों में डुबकियाँ लगाते श्रद्धालुॐ रेतीले मैदान पर तंबुओं के झुण्ड कतार – दर कतारॐ कारवां आता है‚ आता ही जाता है। एक अंतहीन सिलसिला‚ सिरों पर गठरियां – थके‚ नंगे पांव – आस्था का दीप जलाएॐ

दशहरे का उल्लासमय पर्व‚ दारागंज में ‘स्वांग’ रच रहा है। ‘काली माई’ हाथ में चमचमाती हुई तलवार लिये दुष्टों का सर्वनाश करने निकल पड़ी हैं…भागो…भागो…भागो। ‘जगत तारण स्कूल’ में बंगला नृत्य नाटिका की तैयारी। चौक का दल कल निकलेगा।

कवामी सेवैय्यों की ख़ुश्बू नक्खास कोने के कोने कोने से आ रही है। लगता है ईद का चांद नज़र आ गया है। दायरे शाह अज़मल में लोग नमक की नफीस चाय पीते रहे। तमाम रात कव्वाली पर झूमते रहे‚ सिर धुनते रहे। ‘ मन कुंतु मौला अली मौला।’

दिसम्बर सन चौहत्तरॐ खुल्दाबादॐ ख्.याल‚ ठुमरी‚ दादरा मलिकाए तरन्नुम रसूलन बाई का जनाज़ा बड़ी खामोशी से उठ रहा है। रसज्ञ श्रोता श्रद्धा सुमन डबडबाई आंखों में लिये खड़े हैं।

अतरसुइयां। हज्जाम की दुकान। हाथों में ऐसा हुनर खुदा ने दे दिया है कि बाल नहीं तराशते‚ नक्काशी करते हैं‚ इबादत करते हैं।

कोई नया नेता पुरुषोत्तमदास टंडन पार्क में भाषण दे रहा है। अबोध जनता भारद्वाज आश्रम में सिर झुकाए खड़ी है। कल्याणी देवी कुनकुनी धूप में बैठी अपने बाल सुखा रही हैं। दूर कहीं जलतरंग बज उठा।

बनन में‚ बागन में‚ बगर्यो बसन्त है…। सरसों के पीले फूल धीरे धीरे मुंदी पलकें खोल रहे हैं। गेहूं सोने सा दमक उठा। बसन्त के कदमों की अहट सुनाई दी। मन मेरा बौराया। आसमान को चीरता हुआ कोई धूमकेतू अवतरित हुआ। आज ‘बसन्त पंचमी’ है। बसंत के संत ‘निराला’ का जन्मदिन —

आओ‚ आओ फिर
मेरे बसन्त की परी
छवि विभावरी
सिहरी‚ स्वर से भर – भर
अम्बर की सुंदरी…ॐ

दारागंज की गलियों कूंचों में गूंजती स्वर लहरी। मौज मस्ती। पंडो‚ मल्लाहों‚ गुंडों का राज। जीवन के विकृत होते राग।

काली बाड़ी‚ साउथ इलाका। पीताम्बर वस्त्रों में सजी लक्ष्मी सरस्वती की आरती उतार रही है‚ बुदबुदाती …”जय शारदे मां – अज्ञानता से हमें तार दे मां।” अकल का दरवाज़ा धीरे धीरे खुलता है। आज़ाद का बुत अल्फ्रेड पार्क में खड़ा फूलों की प्रदर्शनी देख रहा है। भारतीय भवन पुस्तकालय लोकनाथ में शान से सिर उठाए है। मदन मोहन मालवीय का सपना। स्वतन्त्रता संग्राम का साक्षी‚ साथी। सड़क अपने आप आगे घूम जाती है।

ढाल के ऊपर पान की दुकान…ये देखो…चार बीड़ा पान का लिया‚ कल्ले में दबा लिया। अब चुप्पी साध ली। धीरे धीरे रस लेंगे। बदन में उतरती सनसनाहट…दिव्य आलोक की प्राप्ति। अभी न बोलकारो। ” नय भैया अबहिन मुंह मां पान जमा हय।” उमाकान्त मालवीय की यादें समेटे यश मालवीय के रसीले दोहे गूंज उठे…तुम कहाँ कहाँ नहीं हो?

बैडमिन्टन टूर्नामेन्ट का फाइनल मैच मेयो हॉल में जारी। परसों सैयद मोदी की बरसी थी। निरंजन टॉकीज में कोई पुरानी फिल्म चल रही है।

आ पहुंचा बसन्त के उल्लास का चरम बिन्दु Á

होली खेलैं रघुबीरा…ॐ

बताशे वाली गली में हुड़दंग। बम बम बोले। भंग घुट रही है। छन रही है। इर्विंग क्रिश्चियन कॉलेज के छात्र छात्राओं की आंखों में शरारत। हाथों में गुलाल‚ बगल में किताबें…।

पीछे जमुना जी मंद मंद मुस्काती तरल – तरल बह रही हैं…बह रही हैं…

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आज का विचार

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

आज का शब्द

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

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