मोनोट्रीम नाम के प्राचीन स्तनपायी समूह के मात्र दो ही सदस्य आज के युग में बचे हुए हैं – एकिडना और प्लैटिपस। लातिनी में Tachyglossus aculeatus के नाम से जाना जाने वाला एकिडना प्राणी ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप में पाया जाने वाला एक अत्यन्त ही विचित्र जीव है। प्लैटिपस की तरह ही यह अनोखा स्तनपायी जीव अपना वंश आगे बढ़ाने के लिए अण्डे तो देता है, परन्तु शिशु-एकिडना के पैदा होने पर मानव की ही तरह माता एकिडना अपने शिशु को दुग्धपान कराती है।
एकिडना पूरे ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया भर में पाए जाते हैं। हालांकि यह आसानी से दिखाई नहीं पड़ते हैं, फ़िर भी इन्हें सामान्यत: लुप्तप्रायः नहीं माना जाता है। एकिडना कई प्रकार के प्राकृतिक स्थलों पर पाए जाते हैं, ख़ासकर जहां पर चीटियों और दीमकों की बहुतायत हो। मरूस्थलों और पहाड़ियों की चोटियों पर भी यह पाए जा सकते हैं, जहां यह प्रकृति के भीषण रूप से अपनी सुरक्षा के लिए खोहों व दरारों में शरण या शीतकालीन सुषुप्तावस्था की सहायता ले लेते हैं।
धीमी गति से चलने वाले इस जीव का सिर बल्ब की भांति गोल और उभरा हुआ होता है और नाक के स्थान पर भोजन इकट्ठा करने के लिए एक लम्बा थूथन होता है।इसकी चिपचिपी जीभ थूथन के बाहर १७ सेमी तक लम्बी जा सकती है। एकिडना के मुख में दांत नहीं होते हैं और यह चीटियों और दीमकों के आहार पर ही अपना पूरा जीवन व्यतीत करता है। अपने लम्बे थूथन और आगे के शक्तिशाली पंजों की सहायता से एकिडना दीमकों के बिलों को तहस-नहस कर बौखलाई हुई दीमकों को चट कर जाता है। एकिडना का पूरा शरीर तीखे कांटों से घिरा होता है, जिनके बीच की त्वचा में नर्म बाल होते हैं। इसलिए चीटियों या दीमकों के दंश से इसको किसी भी प्रकार का भय नहीं होता है। किसी अन्य प्र्रकार के ख़तरे का अहसास होने पर यह अपने कांटों को तीखा कर एक गोले के रूप में घूम कर अपने नर्म उदर को बचाने का प्र्रयत्न करता है, या फ़िर अपने उदर को मिट्टी में खोद कर छिपा लेता है जिससे कि केवल कांटे ही आक्रमणकारी को नज़र आएं। नर एकिडना के पृष्ठपद पर एक कांटेदार हड्डी होती है, परन्तु इसमें विष नहीं होता है।
सामान्यत: एकिडना एकांतप्र्रिय जीव होते हैं, परन्तु जुलाई से अगस्त के बीच में अपने जनन-काल के समय अपने शरीर से यह ऐसी तीखी गंध छोड़ते हैं जिससे कि विपरीत लिंग के सदस्यों को इनकी उपस्थिति का पता चल जाए। इस दौरान किसी एक मादा के पीछे कई सारे नर एकिडना एक `ट्रेन’ बना कर तब तक पीछा करते रहते हैं जब तक कि मादा सहवास के लिए तैयार न हो जाए। नर के साथ सहवास के लगभग दो सप्ताह बाद एक मुलायम कवच वाला अण्डा मादा एकिडना की पेट की थैली में स्वयं जमा हो जाता है। ऐसी थैली ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले लगभग सभी स्तनपाइयों, जैसे कि कंगारू और कोआला पशुओं के उदरभाग में भी पाई जाती है। दस दिनों के बाद माता एकिडना की थैली में अण्डे से शिशु-एकिडना का जन्म होता है। जन्म के समय शिशु-एकिडना की त्वचा पर कोई भी बाल या कांटे नहीं होते हैं। माता एकिडना के चूचुक नहीं होते हैं, इसलिए शिशु-एकिडना अपना मुख थैली में विशेष प्रकार के बालों से चिपका लेता है। माता कि दुग्ध-ग्र्रन्थियों से रिसने वाला दूध इन बालों से हो कर शिशु के मुख में लगातार पहुंचता रहता है।
शिशु-एकिडना अत्यंत तीव्र गति से विकसित होता है – अपने जीवन के पहले ४५ दिनों में इसका भार जन्म के समय के भार से पांच सौ गुना तक बढ़ सकता है। इस वय में इसके शरीर पर कांटे भी उत्पन्न हो जाते हैं, जिनके कारण माता को इसे अपनी थैली में लेकर विचरण करने में असुविधा महसूस होने लगती है। इस कारण माता अपने शिशु को किसी चट्टान की दरार या खोह में छिपा देती है और प्रत्येक पांच-छह दिनों में दुग्ध-पान कराने के लिए लौट कर आती रहती है। यह कार्यक्रम करीब छह महीनों तक चलता रहता है।
डिंगो(ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले जंगली कुत्ते) और सियार एकिडना के प्र्राकृतिक भक्षक शत्रु होते हैं। एक सरकारी प्र्रयोजन के तहत दक्षिण ऑस्ट्रेलिया का कंगारू द्वीप भक्षक पशुओं से मुक्त कर दिया गया है, इसलिए इस द्वीप पर एकिडनाओं और अन्य पशुओं की भरमार पाई जाती है।
ऑस्ट्रेलिया में जंगलों में एकिडना आसानी से दिखाई नहीं पड़ते हैं क्योंकि यह बड़े भीरू और शर्मीले किस्म के जीव होते हैं। दीमकों के टीलों के पास खुदाई करने पर यह दिखाई पड़ सकते हैं। इनका मल चमकीली पर्त से ढकी लम्बी गोलियों के समान होता है, जिनमें चीटियों के अधपचे अवशेष दिखाई पड़ते हैं। इसकी सहायता से भी एकिडना के निवास स्थान का ज्ञान हो सकता है।

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जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

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