भारतीय राजस्व सेवा की अधिकारी एवं उडिया भाषा की युवा कथाकार पारमिता शतपथी का पहला कहानी संग्रह ‘दूर का पहाङ’ प्रकाशित हुआ है । इसका हिन्दी अनुवाद हुआ है। इस कहानी संग्रह में भिन्न – भिन्न आस्वाद की 15 कहानियां हैं। सभी कहानियां स्त्री विषयक हैं। लेखिका ने इन कहानियों में विभिन्न वर्ग की स्त्रियों के भिन्न – भिन्न रूप अंकित किए हैं। लेखिका को जीवन के गंभीर क्षणों की सहज अभिव्यक्ति में पर्याप्त सफलता मिली है। पारमिता के सामाजिक सरोकार का महत्वपूर्ण पक्ष स्त्री – पक्ष है।
प्रथम कहानी ‘बाजार’ बेहद सहज तरीके से पारिवारिक विघटन की पृष्ठभूमि खोलती है। एक ऐसे परिवार की कहानी कहती है जिसमें सभी सदस्य ‘परिवार’ के सूत्र में तो बँधे हैं लेकिन उनके पारम्परिक मूल्य खोते जा रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनी में ऊँचे वेतन और पर्याप्त उपरी आमदनी कर लेने वाला संजय हालांकि अपनी पत्नी पर गृहस्थी का बोझ डाले है लेकिन पत्नी होने के नाते जिस विश्वास सूत्र की आवश्यकता है वह सिरे से गायब है, तभी वह बाजार में खरीदारी के लिए निकलता है। ‘मीरा’ के माँ के इलाज के लिए चाहता है कि खर्चे में मीरा का भाई भी हाथ बटाँए। ‘मीरा’ अपने माँ के इलाज के लिए तो संजय को राजी कर लेती है लेकिन ननद के विवाह का खर्च उठाने में खीजती है। वह चाहती है कि ससुर जी विवाह खर्च के लिए पैतृक संपत्ति बेच दें। पारिवारिक अविश्वास की एक बानगी सरिता मोहन्ती से संजय के संबंधों से खुलती है। सरिता मोहन्ती खूबसूरत है और ”कुछ भी करने को तैयार ” है। इसके बदले वह संजय से पाँच हजार पाती है। परस्त्रीगमन के तोष में संजय मीरा को बताता है कि वास्तव में उसके पास रिश्वत के बीस हजार नहीं एक लाख हैं और मीरा पचास हजार के गहने बनवा देने के उसके आश्वासन पर लहालोट हो जाती है। उत्तर आधुनिक समय में अर्थ-वित्त की महत्ता को यह कहानी बहुत सहज तरीके से व्यंजित करती है। पैसे का प्रभाव हर तरफ है और इस बाजार में पैसे से सब कुछ क्रय किया जा सकता है – शरीर भी और प्यार भी ईमानदारी भी और वह सब कुछ जो मूल्यपरक है।
‘सहेली’ कहानी भी अपने स्तर पर उन्ही पारम्परिक मूल्यों को तोड़ती हैं। जया अपनी सहपाठिनी इति श्री के यहाँ अपने भाई के लिए सिफ़ारिश करने आती है। जया का सोचना है कि इतिश्री का पति विकास अगर दिलचस्पी ले तो उसका काम बन सकता है। जया विकास को अपने रूपपाश में बाँध लेती है और देह को अस्त्र की तरह उपयोग करती है। उसका काम हो जाता है। लेकिन कहानी यहीं समाप्त नहीं होती आगे बढ़ती है और देह को हथियार मात्र बनने नहीं देती बल्कि जया विकास को अवैध सम्बन्धों के भँवर में उलझा लेने की पृष्ठभूमि रचती है। इतिश्री इन सबसे परे अनजान एवं भोली बनी रहती है। स्त्री विमर्श का एक महत्वपूर्ण पहलू देह के विमर्श से जुड़ता है। पारमिता उसकी परिणति दिखाने की कोशिश करती हैं।
‘प्रेमगर्भ’ भिन्न मन: स्थिति की कहानी हैं। ‘सेवती’ से कठिनतम परिस्थितियों में सुरेश प्रेम विवाह करता है। इसके लिए वह टुलुसेठ नामक सूदखोर के यहाँ अपना ऑटो रिक्शा रिगवी रख देता है। टुलुसेठ की नजर सेवती पर है। वह सेवती को अकेला पाकर बलत्कृत करना चाहता है कि ऐन वक्त पर सुरेश के हाथों मारा जाता है। सुरेश आजीवन कारावास का दण्ड पाता है। सेवती उसे छुड़ाने के लिए कानून की गलियों में अनेकश: बलत्कृत होती है वह दारोगा से बचने के लिए आखिरकार प्रयास करती है। आरोपी बनाकर जेल में डाल दी जाती है। वह गर्भवती हो जाती है, तमाम लांछन सहती है। सुरेश वास्तविकता से परिचित हो उसे स्वीकार कर लेता है। प्रेम की विजय होती है। लेकिन स्त्री के उत्पीड़न की विविध स्थितियाँ पाठक को झकझोर डालती हैं। सेवती का यह कथन समाज के स्त्री के प्रति व्यवहार का चरित्र बखूबी स्पष्ट करता है – ”क्या हो जाता यदि मैं टुलुसेठ के पास दो-तीन बार चली जाती? हमारा आटो रिक्शा तो छूट जाता – हमारी गृहस्थी तो बस जाती, हम लोग खुशी-खुशी तो रहते।” सेवती के बहाने पारमिता स्त्री के ऊपर तमाम सामाजिक दबाव का आख्यान प्रस्तुत करती है।
‘विस्तृम विहंग’ मानसी और अरूण के अपार्थिव प्रेम की कथा है। बचपन का प्रेम बेरोजगारी और सामाजिक प्रतिष्ठा की भेंट चढ़ जाता है। अरूण की इच्छा थी कि – ”तुम जहाँ भी रहो, मेरे मृत शरीर के पास आकर जरा खड़ी हो जाना-पल भर के लिए सही….।” मानसी एयरपोर्ट पर अपने बेटी-दामाद का इन्तजार कर रही होती है कि पता चलता है कि बगलवाली महिला अरूण की विधवा है और अरूण का शव विदेश से आ रहा है। उसके मन में अतीत कौंध उठता है – तथाकथित अभिजात्यपन एवं सामाजिक दबाव में वह अरूण की आखिरी इच्छा भी पूरी नहीं कर पाती। अपनी विवशता व पराधीनता पर वह फूट-फूटकर रो पड़ती है। उसके दर्द को कोई समझ नहीं पाता। बेहद अन्तर्द्वन्द्व से जूझती मानसी की मन: स्थिति के चित्रण में पारमिता सफल है हालांकि कहानी का पूरा प्लाट फार्मूलाबध्द प्रतीत होता है।
स्त्री पराधीनता को और भी गहरे स्तर पर उभारती है कहानी ‘पिंजरा’ में आधुनिक एवं अभिजात्य परिवार की बहु प्रिया गुणों के आधार पर बहू बनती है लेकिन गुणवान होना ही जरूरी नहीं है। अपर्याप्त दहेज उसकी जिन्दगी नरक बना देती है। पिंजरे की पक्षी बनी प्रिया का प्रतीक बहुत व्यंजक है। पारम्परिक परिवार के मूल्यों की वाहक प्रिया घर में नौकरानी बन जाती है। उसके जीवन के घुटन एवं संत्रास को उसकी सहेली तनुश्री और भी उभारती है जिसके यहाँ न सिर्फ स्त्री-पुरूष को समान अधिकार प्राप्त हैं अपितु विवाह-पूर्व साथ रहना तक ज़ायज़ भी है। घर की चहारदीवारी में कैद रहने को अभिशप्त प्रिया की सास तनुश्री को ऊँचे रूतबे वाली जानकार दिखावा करती है कि प्रिया को पर्याप्त स्वतंत्रता मिली है लेकिन तोते का ‘मीना-मीना’ कहकर पुकारना इसे झूठलाता जाता है। शादी के बाद न सिर्फ प्रिया पराधीन हो जाती है अपितु उसके पहचान तक को मिटा डालने की पुरजोर कोशिश होती है। प्रिया की ननद रूबी का स्वछन्द व्यवहार प्रिया को दुहरे संकट में डालता हैं।
‘बयान’ एक रहस्यमय कहानी है जिसमें विवाह का झांसा देकर भागे युवक से युवती के मानसिक संवाद हैं। इस मानसिक उधेड़बुन में उसके समाने कई रहस्य की परतें खुलती हैं। ‘विविध अस्वप्न’ भी मानसिक अन्तर्द्वन्द्व की कथा है जिसमें स्त्री के अभिशप्त नियति व्यक्त है कि किसी भी स्थिति में पति उसके लिए परमेश्वर ही होता है चाहे वह पागल ही क्यों न हो।
‘आरण्यक’ कहानी बहुत शिद्दत से प्रेम के मानवीय पक्ष एवं मनुष्य के दोहरे चरित्र की ओर ध्यान आकृष्ट करती है। पिकनिक पर गया सम्बित अजगर को तो छेड़ने से भी मना करता है लेकिन निरहि मोर को मारकर बहादुर बनता है। वह दुहरे चरित्र का व्यक्ति है। उसे प्रेमिका के तौर पर स्वतंत्र एवं खुले विचारों वाली लड़की पसंद है लेकिन विवाह के लिए वह घरेलू महिला को तरजीह देता है तभी अपनी सहकर्मिणी को इसके लिए राजी करता है कि विवाह के बाद वह नौकरी छोड़ देगी। वह स्वयं तो स्वतंत्र रहना चाहता है जबकि पत्नी से अपेक्षा रखता है कि वह एकनिष्ठ एवं पतिव्रता बनी रहे। प्राची सम्बित के दुहरे चरित्र को पहचान लेती है और उसके प्रति तल्ख हो उठती है। पारमिता शतपथी की यह कहानी बहुत सहज तरीके से स्त्री के स्वतंत्र निर्णय लेने की जागरूकता की ओर संकेत करती है।
‘चन्द्रशिला’ की नायिका सिकता पूर्णता की तलाश में भटकती है। वह अपने पति की परस्त्री के प्रति मोह एवं स्वयं के प्रति अनिच्छा से अपूर्ण महसूस करती है। पारमिता ने अन्तर्द्वन्द्व से जूझती सिकता को यथास्थितिवाद के गहर में डाल देती है। ‘वह पूर्ण कुछ नहीं’ जानकर वापस नियति के दुष्चक्र में लौट आती है।
‘भंगुर’ कहानी को विपरित अनुभवों वाली महिलाओं अनीता एवं आरती की कहानी है। जहाँ आरती अपने वैवाहिक जीवन की त्रासदी को याद करते हुए छुटकारा पाकर संतोष का अनुभव करती है वही अनीता अपने सुखद वैवाहिक जीवन की समाप्ति से दुखी है। कहा जा सकता है कि अनीता की कथा हर्ष के क्षणों को याद कर कष्ट उठाने की है वहीं आरती के लिए संत्रास एवं उपेक्षित जीवन से राहत पाने की। वस्तुत: यह कहानी जीवन के धूर-छाँही रूप को अभिव्यक्ति देती है।
स्त्री विषयक कहानियों की कड़ी में ‘छिन्न मल्लिका’ भी आती है। चमक-दमक और चकाचौंध की दुनिया मल्लिका को देह-व्यापार में धकेल देती है। मोना मल्लिका के ऑंखों में इस चकाचौंध की दुनिया की चाहत को भाँप लेती है और उसे उस दुनिया से परिचित कराती है। एक बार स्वाद पा लेने के बाद मल्लिका स्वतंत्र हो जाती है। यह व्यापार उसे तमाम सुखोपभोग के साजो-सामान उपलब्ध कराता है। लेकिन इसकी कीमत उसे गर्भपात करवाकर चुकानी पड़ती है। शतपथी की यह कथा मल्लिका के बहाने युवतियों के भटकाव एवं अनैतिकता के गहवर में चले जाने की मृग-मरीचिका गढ़ती है। हालांकि पारमिता यह यथार्थ रचते हुए नरकीय पक्ष की ओर कम ध्यान देती है। यथार्थ के प्रति पारमिता का आग्रह प्रगतिशील मूल्यों तक नहीं जाता। ‘सहेली’ कहानी में भी यही कमी झलकती है।
‘दूर के पहाड़’ संग्रह की प्रतिनिधि कहानी है। अविवाहित एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अंजना ठक्कर अपनी लगन एवं मेहनत से ऊँचे रसूख तक जाती है। उसका जीवन बेहद सीधा-सादा है। योग्य वर के अभाव में उसका विवाह टलता गया था। उम्र के एक पहाड़ पर उसे जीवन; साथी का अभाव खटकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात कि मातृत्व सुख से वंचिता मन में कसक बनी रहती है। अकेलेपन की पीड़ा को अंजना लोगों से मैत्री करके बाँटना चाहती है लेकिन उसका अकेलापन कटता नहीं दिखता।
‘स्वाद और तृप्ति’ कहानी की सिकता पारिवारिक व्यस्तता के बीच भी अपनी विशिष्ट रूचियों के कारण महत्वपूर्ण है। अपने स्वतंत्र अध्ययन से वह अनूठे कलात्मक दृष्टिकोण की मालकिन बन जाती है जिसका अहसास् साधन कराता है जो कि एक कम्पनी में डिजाइन एडवाइजर है। साधन सिकता की कलात्मक प्रतिभा से अभिभूत हो जाता है और सिकता के सामने अपार संभावनाओं की तस्वीर रख जाता है। सिकता में साधन के पारखी आकलन से जीवन का स्वाद एवं तृप्ति पाने की इच्छा कुलबुलाने लगती है।
‘मातृत्व’ शीर्षक कहानी में स्त्री की दायित्वों के दबाव की बाते हैं। जानकी माँ है पत्नी है, कामवाली बाई है लेकिन स्त्री नहीं है। उसे अपने बारे में सोचने की फुरसत नहीं है। सोमवार यानि दिन का पता उसे मालकिन के नित्यक्रिया से पता चलता है। गरीबी के कारण अधेड़ एवं अकर्मण्य व्यक्ति से विवाहित जानकी तीसरे बच्चे को पेट में रखे है। वास्तव में तमाम कठिनाइयों में जानकी जीवन-निर्वाह कर रही होती है। मातृत्व जानकी के बहाने स्त्री के सतत संघर्षों की कथा है।
‘कारगिल की गोद’ भारत-पाक युध्द की भयावहता को उभारता है। युध्द में शहीद हुए युवक की माँ शख की विक्षिप्तता को देखकर खुद भी विक्षिप्त हो उठती है। पूरे कहानी में उसकी करूणा व्याप्त रहती है।
पारमिता शतपथी का यह पहल संग्रह स्त्रीमन की विविध स्थितियों को स्पष्ट करता है। यह संग्रह सूक्ष्म मनोविश्लेषण कर उन परतों को खोलता है जो विभिन्न परिस्थितियों में स्त्री सोचती एवं भुगतती है। स्त्री-विमर्श के पारम्परिक आक्रोश का स्वर पारमिता के यहाँ नहीं है लेकिन यथार्थ का सहज एवं सूक्ष्म चित्रण अवश्य ही यथास्थितिवाद के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलन्द करती है। कुछ कहानियाँ यथा-दूर के पहाड़, पिंजरा, स्वाद और तृप्ति, मातृत्व बाजार आदि अपने स्वरूप में बेहद सघन हैं। इन कहानियों से पारमिता के स्त्री स्वभाव की पहचान एवं उनके विश्लेषण की अद्भुत क्षमता का पता चलता है। कुछ कहानियाँ यथा-छिन्न मल्लिका एवं सहेली आदि में यथार्थ के उद्धाटन से जिस प्रगतिशील स्थिति की संभावनाएँ खुलती हैं वह नहीं मिलती। फिर भी पारमिता सुखद भविष्य के संसार की रचना कर सकी हैं।
संभावनाओं का अन्त नहीं होता। सम्भवत: इसीलिए सृजन की किसी भी विधा से जुड़ा रचनाकार यह दावा नही करता कि उसने अपना अन्तिम लक्ष्य हासिल कर लिया है। वह सदा बेचैन रहता है – बेहतर रचने के लिये। पारमिता को भी इसका बोध होगा ही।
‘दूर का पहाड़’ पारमिता की सम्भावनाओं के प्रति हमें आश्वस्त करता है। भारतीय राजस्व सेवा की अधिकारी पारमिता शतपथी ने व्यस्तताओं के बाद भी एक सारगर्भित कृति का सृजन किया है जो प्रशंसनीय है। निश्चित रूप से पारमिता के सृजन की गन्ध दूर तक जायेगी। यह एक ऐसी विशिष्ट कृति है जिसकी जमीन पर स्त्री रचनाकार का एक विशिष्ट रूप उभरता है।
उम्मीद है पारमिता अपने सृजन के जरिए नये क्षितिज का निर्माण करेंगीं।
कहानी संग्रह ‘दूर का पहाङ’
लेखिका-पारमिता शतपथी I.R.S.
प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ
विवेक पाण्डेय
फरवरी 12,2008