‘परम प्रेम’ (
absolute Love) का तिलिस्मी शीशा : आन्ना कारेनिना
आन्ना कारेनिना लिखे जाने के दौरान दर्ज की गईं अपनी
आत्मस्वीकारोक्तियों में तॉल्स्तोय लिखते हैं.
“हर बार, जब भी मैं ने अपनी गहन इच्छाओं के तहत, नैतिक स्तर पर अच्छा
अभिव्यक्त करने की कोशिश
की – मैं अवमानना तथा तिरस्कार से गुज़रा. फिर जब - जब मैंने मूल
प्रवृत्तियों पर लिखा, सदा मुझे प्रशंसा व प्रोत्साहन मिला.”
यह अपने आप में एक बहुत बड़ी कसौटी है लेख़न की, कि आप मानव की
अंत:श्चेतना में कितने गहन स्तर पर उतर कर लिख सके. उन्नीसवीं सदी का रूस,
विक्टोरियन नैतिकता का समय और आन्ना गढ़ने की चुनौती, नि:सन्देह तॉल्स्तोय
आन्ना की रचना के दौरान भीषण सृजन – वेदना से गुज़रे होंगे. ऎसी रचना लिखने
की सृजन-वेदना जो लेखक के स्वयं के भीतरी संसार को हिला कर रख दे.
नैतिकता और शुचिता तथा समाज के नियमों की पालना करते हुए दृढ़ चरित्रों को
गढ़ना कहीं आसान है, मगर वे बहुत उथले स्तर पर पाठक को प्रभावित करते हैं,
ठीक वैसे ही जैसे ओढ़ी हुई खुश्बुएँ. मूल प्रवृत्तियाँ तो पानी में हिलती
परछाइयाँ हैं, उन्हें हू – ब –हू पकड़ना आसान नहीं है, वे आदिम महक सी हैं,
मानव होने की सम्पूर्ण विकास यात्रा का ‘जीन – मैप ( जटिल गुणसूत्रीय
संरचना) ’ लिए.
इतने विशाल फ़लक पर, उन्नीसवीं सदी के राजनैतिक संक्रमण, सामाजिक
संक्रमण के काल में, सम्पूर्ण परिवेश तथा स्थानीयता समेटते हुए मानव के
आंतरिक जटिल सम्बन्धों पर तॉल्स्तोय के आन्ना कारेनिना लिखने की कल्पना कर
के, सृजन के अंश भर तनाव को महसूस करके ही एक लेखक होने के नाते, आज इस समय
में भी मेरे तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
संसार के ज़्यादातर महान उपन्यास निषिद्ध प्रेम पर आधारित हैं. उन्हें
पढ़ते हुए, उनके पात्रों की चारित्रिक विकास की यात्रा पर गौर करें तो,
तत्कालीन समय, समाज, परिवेश तथा पारिवारिक जीवन मूल्यों तथा समाज की बनावट
– बुनावट इन परिस्थितियों के नेपथ्य में ज़रूर होते हैं. आन्ना कारेनिना
निस:न्देह संसार के उन्हीं महानतम उपन्यासों में से एक है. यह समाज और उसके
नैतिक मापदण्डों के सापेक्ष प्रेम तथा मानव की मूल प्रवृत्तियों, महीन
मनोसंसार की हलचल पर लिखा गया उपन्यास है.
उन्नीसवीं शती के मास्को और पीटर्सबर्ग के उच्चवर्ग के परिवेश को
ध्यान में रख कर लिखी गई, विवाहेत्तर प्रेम की क्लासिक गाथा तथा मानव की
आंतरिक प्रवत्तियों का एक बेहद समृद्ध और जटिल ‘मास्टरपीस’ है ‘आन्ना
कारेनिना’. तॉल्स्तोय दर्जनों चरित्रों को इस महागाथा की अनेकों उपकथाओं
में इस कौशल से बुनते हैं कि कहीं कोई धागा नहीं दिखता और उस समय के मास्को
और पीटर्सबर्ग के ऊँचे तबके के दृश्य – चित्रों की अनूठी टेपेस्ट्री बना
डालते हैं. आन्ना कारेनिना चाहे उन्नीसवीं सदी के रूस, उस समय की उच्च
वर्गीय मानसिकता पर लिखा गया उपन्यास है मगर यह तो बहुत पहले ही काल –
परिवेश – व्यक्ति और समाज की सीमाओं को पार कर चुका है. विवाह, छल, स्त्री
– पुरुष की भूमिका, आंतरिक संतोष, सम्मान, ईमानदारी, प्रकृति व आध्यात्म...
क्या नहीँ है इस उपन्यास में, जिसकी यह आज के सन्दर्भ में भी सटीक व्याख्या
प्रस्तुत न करता हो?
शुरुआत ही में लेखक लिख देता है – “सभी सुखी परिवार एक जैसे सुखी हैं
और हर दुखी परिवार अपने ढंग से दुखी है.” सुखी परिवार वे जो लीक पर बँधे
सामाजिक मापदण्डोँ पर खरे उतरें, नैतिकता के बरसों – बरस पुराने नियमों का
पालन करें. दुखी परिवार वे जहाँ, सामाजिक प्रतिपालनाओं के प्रति कोई भी एक
बावरा विद्रोह करे, प्रेम, स्वप्न या जोग के लिए देहरी लाँघे. इसी आरंभिक
कथन के साथ इस उपन्यास की विराट कथा को वह दो फाड़ करते हैं, एक ओर लेविन का
एकनिष्ठ प्रेम है कीटी के प्रति, दूसरी तरफ व्रोंस्की जैसे बांके, जवान
फौजी का अस्थिर प्रेम है जो कीटी से आरम्भ होकर आन्ना तक पहुँचता है. कीटी
जिस पार्टी में बेसब्र होकर लेविन के प्रस्ताव की उपेक्षा कर व्रोंस्की के
प्रस्ताव की प्रतीक्षा कर रही होती है, उसी पार्टी में व्रोंस्की अतीव
सुन्दरी आन्ना को देख कर उससे बुरी तरह आकर्षित हो जाता है और सब कुछ भुला
कर बस आन्ना के पीछे चल पड़ता है. अंतत: कीटी लेविन के दृढ़ चरित्र का मूल्य
समझती है, और उसकी तरफ लौट कर एक भरा – पूरा सुखद दाम्पत्य जीती है. आकर्षक
व विद्रोहिणी आन्ना दूसरों द्वारा तय किए गए अपने उदासीन व उत्साहरहित
दाम्पत्य से उकता जाती है और युवा और रोमांटिक व्रोंस्की के साथ चली जाती
है. कारेनिन से तलाक और व्रोंस्की के साथ विवाह के बिना रहने वाली आन्ना
समाज से लगभग तिरस्कृत और निर्वासित जीवन जीती है, जिसके चलते प्रेम का
सजीव चित्र लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि इस सत्य के प्रतिपादन में कि
चारित्रिक विचलन, अंतत: विघटन को प्राप्त होता है, आन्ना का प्रेम व उसका
अनूठा चरित्र उम्मीद से परे पतनशील होकर भी एक आकस्मिक उठान को प्राप्त
होता है, और तॉलस्तॉय की आन्ना मर कर समाज को क्या सन्देश देती है वह एक
अलग बात है मगर वह उपन्यास की प्रमुख तथा अद्भुत पात्र बन कर अमर ज़रूर हो
जाती है.
आकर्षण, प्रेम, कामना ... और फिर इस दिशा में लिया गया हर ग़लत कदम व्यक्ति
के पतन की वजह बनते हैं, आन्ना पर हर जगह यह सन्देश थोपा जा सकता था, मगर
तॉल्स्तोय चाह कर भी ऎसा न कर सके, आन्ना ने अपने प्रेम को, जहाँ तक संभव
हो सका गरिमा के साथ स्वीकारा.
बेवफाई, केन्द्रीय विषय है, इस उपन्यास का, जो कि पहले ही पन्ने से
उपन्यास में प्रमुख़ स्वर की तरह उपस्थित है. कई बार लगता है, बेवफाई का यह
‘मोटिफ’ की तरह पूरी प्रबलता से लेखक ने व्रोंस्की और आन्ना के चरित्र पर
चस्पाँ करना चाहा है. रेल्वे स्टेशन पर ही से जहाँ पर पहली बार वे दोनों
मिलते हैं, वहीं से संकेत मिलने लगते हैं कि इनका जीवन अब पतन, विचलन व
नष्ट होने की दिशा में है. उनका रिश्ता वहीं पर सतही और महज दैहिक आकर्षण
के चलते जीवन की परिस्थितियों के विपरीत चलने का संकेत देता है. पहली बार
आन्ना स्टेशन पर लेने आए पति कारेनिन के अतिरिक्त प्रेम प्रदर्शन को भोंडा
महसूस करती है, अपने पीछे आते काउंट व्रोंस्की की आहटें महसूस करती है. उधर
व्रोंस्की भी आन्ना के विवाहिता होने की सच्चाई को झुठलाना चाहता है – “
नहीं, वह उसे प्यार नहीं करती और कर भी नहीँ सकती.” ( आन्ना कारेनिना – लेव
तॉलस्तॉय, भाग 1-4 : पृ. 175) खुद को समझाता है कि वह ऎसे कम आकर्षक अधिक
उम्र के व्यक्ति से कैसे प्रेम कर सकती है? वह अपने प्रयासों में तेजी
लाते हुए कारेनिन से कहता है “ आशा करता हूँ कि आपके यहाँ आने का सौभाग्य
प्राप्त होगा.” जिसका उत्तर आन्ना का पति बहुत ही रुखाई से देता है. (पृ.
175)
इस उपन्यास की कथा, उपन्यास के दो प्रमुख चरित्रों, लेविन व आन्ना की
समानांतर ज़िन्दगी के चलते भी दोफाड़ हो ही नहीं पाती, जो पूरे जीवन में बस
एक बार मिलते हैं, एकदम भिन्न जीवन मूल्यों पर जीते हैं. यहाँ तॉल्स्तॉय
के कथा कौशल का जादू चलता है. स्तीवा और डॉली इन दोनों महापात्रों लेविन व
आन्ना को आपस में जोड़ते हैं, आन्ना स्तीवा की बहन है, और स्तीवा की पत्नी
डॉली, लेविन की प्रेमिका व पत्नी कीटी की बहन है. व्रोंस्की कीटी और अपने
प्रेम को खिलने – निखरने से पहले ही तोड़ कर आन्ना की तरफ बढ़ जाता है. इस
तरह आन्ना और लेविन एक ही ऑर्बिट में बने रहते हैं मगर एक ही बार ही मिल
पाते हैं.
तॉल्स्तोय उपन्यास के आरम्भ में बाइबल में से उठा कर मॉज़ॆज़ के गीत की
एक पंक्ति लिखते हैं – वेंजेंस इज़ माइन, आई विल री-पे. प्रतिहिंसा मेरा काम
है, इसे मैं ही चुकाउँगा.
यह कतई स्पष्ट नहीं है कि यह क्या सोच कर लेखक ने लिखा होगा मगर कई बार
सन्देह होता है कि संकीर्ण नैतिकता के उस काल में क्या यह विचार चरित्रहीन
आन्ना की नियति – निर्धारण के रूप में लेखक ने लिखा है? या मानवीय
कमज़ोरियों को आतंकित करने के लिए? विवाहित होते हुए प्रेम करने की अपनी भूल
के कारण ही उच्च समाज से बहिष्कृत आन्ना के लिए लेखक ने माँ होने की पीड़ा,
ममता की तड़प और फिर कष्टकारी आत्मघाती अंत तय कर दिया था क्या? यह उनके किस
मानसिक व संस्कारी ढाँचे का परिणाम था? या फिर बस वे तो उस समय के समाज को
बस हू – ब- हू चित्रित करने में लगे थे. उस समय की नैतिकता को लेकर
तॉल्स्तोय की दार्शनिक और गूढ़ धारणा पर यहाँ प्रश्न चिन्ह लग जाते हैँ.
न्याय के असमान बँटवारे तथा व्यवहार, एक स्त्री की निजी स्वतंत्रता व
अस्तित्व को लेकर वे समाज के नियमों तथा भाग्य द्वारा उसे मिली सज़ा को आँख़
पर पट्टी बाँध कर स्वीकार करते हैं? यहाँ केवल आन्ना ही नहीं स्तीवा ( खुद
आन्ना का भाई ऑब्लोंस्की) भी बेवफा है. व्रोंस्की स्वयं एक छलिया साबित
होता है जो पहले मासूम कीटी की भावनाओं को उकसा चुका है, फिर आन्ना को
देखकर, विवाहिता जानकर भी वह भी अप्रत्याशित तरीके से महज दैहिक आकर्षण के
चलते आन्ना के प्रति प्रेम की तूफानी भेंट लाकर आन्ना को चौंका देता है.
ये चरित्रहीन पुरुषपात्र तो ऎसी कोई कीमत या बदला नहीं चुकाते. वे
न्याय व नियति के नीति निर्धारण से परे हैं! अवसरवादी, चरित्रहीन
ऑब्लोंस्की अपनी सुविधा के तहत विवाह में रह कर, नैतिकता के तयशुदा दायरों
के भीतर सुरक्षित दैहिक दुराचार करता हुआ मज़े से उसी समाज में उठता – बैठता
है. किंतु आन्ना, एक भिन्न स्तर पर अपनी आत्मिक नैतिकता के तहत अपने
विवाहेतर प्रेम के बारे में ईमानदारी से पति को बताती है, तलाक की माँग
करती है, फिर प्रेमी के पास जाती है. मगर वह समाज से तो तिरस्कार ही पाती
है, फिर भी वह सतही, प्रेमविहीन दाम्पत्य से परे अपने लिए स्वतंत्र जीवन
चुनती है. वह सामाजिक ढाँचे के बहुत से गैरज़रूरी नियम तोड़ती है. जबकि
व्रोंस्की को कोई कुछ नहीँ कहता, वह घुड़दौड़ों में हिस्सा लेता है, मास्को –
पीटर्सबर्ग के अपने उच्चवर्गीय परिचितोँ, सेना के अफसरोँ के घरों में
आयोजित सामाजिक समारोहों में बिना तिरस्कृत हुए शामिल होता है.
इस उपन्यास में कई जगह तॉल्स्तोय अपनी इस धारणा की पुष्टी करते प्रतीत
होते हैं कि समय तथा समाज का अस्तित्व, उसके नियम एक व्यक्ति से बड़े होते
हैं. हालाँकि आज के सन्दर्भ में देखें तो भारतीय समाज अब भी इसी धारणा का
पालक – पोषक रहा है. पुरुष विवाह के ‘कोज़ी’ दायरे में रह कर कई – कई
सम्बन्ध बना कर समाज में नैतिकता के तयशुदा नियमों का पोस्टर उठा कर चलता
है, स्त्री प्रेम करे या सम्बन्ध बनाए, वह पतिता है, सहज सुलभ है, उसके लिए
सामाजिक तिरस्कार तो सबसे छोटी सज़ा है.
आन्ना एक सुन्दर ही नहीं बुद्धिमान स्त्री है. वह बहुत सी किताबें
पढ़ती है, कला के प्रति उसकी समझ गहरी है, वह बच्चों के लिए किताबें भी
लिखती है. उसकी सुन्दरता बहुआयामी है, वह सुरुचिसम्पन्न है, दूसरों के
प्रति सम्वेदनशील है, हंसमुख है. अच्छी मां है, परिवार में निभाव व संतुलन
रखना जानती है. उसका सौन्दर्य लोगों को मुड़ कर देखने के लिए बाध्य करता है,
उसके कपड़ों व में रंगों तथा डिज़ाइन का चुनाव भी सदा ऎसा होता है जो उसकी
सुन्दरता में वृद्धि करता है. ज़ेवर भी वह बेहद सुरुचि से पहनती है. वह न
केवल अपने वर्ग के समाज में सहज ही सबके आकर्षण का केन्द्र बन जाती है
बल्कि वह अपने सेवकों और गरीब रिश्तेदारों के भी स्नेह की पात्र है.
क्योंकि आन्ना प्रेम में विश्वास करती है. वह पति व अपने बेटे ही से प्रेम
नहीं करती, मित्र, भाभी, सेवक – सेविकाओं से भी प्रेम करती है. उपन्यास के
शुरु में ही वह अपने भाई स्तीवा और डॉली के टूटते परिवार को बचाने के लिए
अपने बेटे सेर्योझा को छोड़ कर उनके घर मॉस्को जाती है और उनमें सुलह करवाती
है और उसकी सारी सम्वेदना भाई की जगह भाभी के लिए होती है. वह अपने पति
अलेक्सेई अलेक्सान्द्रोविच कारेनिन का अगाध सम्मान करती है, जो प्रेम का ही
बदला हुआ स्वरूप है, क्योंकि कारेनिन उम्र में उससे बड़ा है, वह रूसी
राजनैतिक परिदृश्य में एक ऊँचा स्थान रखता है तथा देश की महत्वपूर्ण
नीतियोँ को तय करने में उसका क़िरदार हमेशा अहम रहा होता है. अलेक्सेई
अलेक्सान्द्रोविच कारेनिन घर व सामाजिक दायरे की ज़िम्मेदारी आन्ना को देकर
अपने काम में व्यस्त रहता है. वह एक औपचारिक व्यक्ति है तथा देश के ज़रूरी
मसलों के आगे घरेलू मामलों को बिलकुल अहमियत नहीँ देना चाहता. वह संतुष्ट
है कि उसके पास आन्ना जैसी रूपसी और प्रतिभावान पत्नी है और एक प्यारा बेटा
है. वह आन्ना के प्रति स्नेह रखता है, उसकी भावनाओं का यथासम्भव ख्याल रखता
है. सामाजिक समारोहों में उसके साथ जाता है. मगर आन्ना के मन में जो प्रेमी
का जो फैंटसीयुक्त खाँचा है बस उसमें फिट नहीँ बैठता. उसके दूसरी ओर काउंट
अलेक्सेई किरिलोविच व्रोंस्की है, वह छरहरा, आकर्षक, अमीर डैशिंग मिलिटरी
ऑफिसर है जो अच्छे ढंग से प्रस्तुत होता है, स्वयं को अभिव्यक्त करता है,
प्रेम को खुल कर प्रकट करता है. आन्ना की फैंटसी के खाँचे में एकदम फिट
होता हुआ.
जिस तरह आन्ना की आंटी ने विवाह से पहले सुन्दर और महत्वाकान्क्षी
आन्ना के लिए अमीर और ओहदेदार वर तलाशने की कवायद की थी वह उस समय के यूरोप
की सच्चाई ज़रूर है. किंतु खूबसूरत और ज़िन्दादिल आन्ना का असंतुष्ट दाम्पत्य
और उसके काउंट व्रोंस्की के साथ अवैधानिक प्रेम की वजह केवल कारेनिन नहीं
है. तब तो लगभग अनाथ आन्ना ने उम्र में बड़े, स्थूल कारेनिन से विवाह कर
लिया, मगर एक ऊँचे स्तर पर आकर उसकी कामनाएं युवा काउंट व्रोंस्की के लिए
जाग गईं तो वह खुद को रोक न सकी क्योंकि वह खूबसूरत थी और कामनाओं से
परिपूर्ण थी.
अकसर हर बार आन्ना का ज़िक्र आते ही कारेनिन को ह्रदयहीन, रूखा और बस अपने
काम में व्यस्त करार कर दिया गया है, मगर तॉल्स्तोय की मन की महीन परत को
फॉरसेप से उलट कर देखने वाली अनुसन्धानी कलम ने उसे ऎसा दिखाने की कोशिश
नहीँ की. वह तमाम व्यस्तताओं के बावज़ूद आन्ना को लेने स्टेशन जाता है.
आन्ना को प्रेम करता है. उसका सम्मान करता है, उसे स्वतंत्रता देता है हर
तरह की. बल्कि वह काउंट व्रोंस्की से ठहरे गर्भ के बावज़ूद आन्ना को घर से
नहीं निकालता, जब आन्ना उसकी बेटी को जन्म देती है तो उसके स्वास्थ्य की
चिंता करता है, अकेले में उस बच्ची को छूता भी है. वह स्वयं को आन्ना के
मापदण्डों पर खरा उतारने की पूरी कोशिश करता है.
( कई बार लगता है जानबूझ कर तॉल्स्तोय ने जहाँ कारेनिन के स्नेहिल और
मानवीय, फॉरगिविंग चरित्र का कुछ हिस्सा कुछ अव्यक्त छोड़ा है और पाठकों की
समझ पर भरोसा किया है, वही अंत में आन्ना के प्रति बदलते व्रोंस्की की
चारित्रिक कमज़ोरियों से भी पाठकों की निकट दृष्टी से कुछ दूर रखा है. जबकि
उन्होंने आन्ना के पति को पूरी तरह ह्रदयहीन व भौतिकतावादी नहीं बनाया,
उसके मन की नरमाई व टूटन को भी उन्होंने व्यक्त किया. वहीं व्रोंस्की के
व्यक्तित्व के भावनात्मक पक्षों से पाठकों को जानबूझ कर दूर रखा है.
कारेनिन व व्रोंस्की के क्लोज़ शॉट से वे हमेशा बचे हैं. वो क्या सोचता है,
सोच रहा है, उसके संशय, पश्चाताप कुछ स्पष्ट नहीं होता जबकि वह भी उपन्यास
का प्रमुख चरित्र है. )
यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि अंतत: व्रोंस्की का ही उथला व
अस्थिर चरित्र आन्ना को पूरी तरह प्रेम नहीं दे पाता, जिसकी आवश्यकता के
तहत वह उसकी तरफ पाप और पुण्य की शिलाओं से टकराती हुई आवेग से बही थी.
व्रोंस्की को आरम्भ में आन्ना से आवेगमय प्रेम था भी, मगर जीवन के घर्षण से
वह प्रेम आम दाम्पत्य से भी ज़्यादा भोंथरा हो जाता है क्योंकि यहाँ कोई
सामाजिक बाध्यता नहीं है और आन्ना की परम प्रेम की अवास्तविक तलाश...हताशा
में बदल जाती है, व्रोंस्की का प्रेम आन्ना के लिए आरम्भ में चाहे कैसा भी
हो अंत तक आते – आते वह अधूरा, सवालिया हो जाता है और दुबारा परख़ने की कगार
पर आ खड़ा होता है. आन्ना जब भी सामाजिक समारोहों में बाहर निकलती है,
तिरस्कृत होती है, बाहर निकलना छोड़ देने पर उसे लगता है कि काउंट व्रोंस्की
तो आज़ाद है, वह मज़े करता है बाहर मैं.... उपेक्षित बन्द, अकेली रह जाती
हूँ.
कहाँ वह रूसी समाज के ऊँचे तबके की प्रभावशाली महिला होती है, कहाँ वह
व्रोंस्की के साथ असुरक्षित मानसिकता में, बेटे के लिए तरसती, तिरस्कृत,
उदास और अकेली छूट जाती है. उसे लगता है कि जिस रास्ते पर कोई न चला उस पर
चलने की ज़िद में सुख से ज्य़ादा पीड़ा ही हाथ आई है. वह काउंट व्रोंस्की के
प्रेम में भी आशंका ढूँढ लेती है. आन्ना का प्रेम भी खीँचतान में बदलने
लगता है, और परम – प्रेम की एक स्त्री के मन में बनी तस्वीर धुँधलाने लगती
है. उसे यहाँ भी शांति और सुख नहीं मिलता.
आन्ना के समानांतर उपन्यास के दूसरे किस्से का नायक है, कोंस्तांतिन
दिमिट्रीच लेविन – लेविन एक गैरसामाजिक किस्म का, नागरिक जीवन से यथासंभव
दूर रहता हुआ, उदार जमींदार है. यह बहुत स्पष्ट है कि लेविन, आन्ना के
समानांतर प्रमुख तौर पर जो नायक बना खड़ा है, वह स्वयं तॉलस्तॉय ही हैं. वे
पूरे उपन्यास में आइडियल लेविन के मोह में बहुत ग्रस्त रहे हैं, जो कि एक
लेखक के लिए अतिस्वाभाविक है. वे लेविन के माध्यम से एक आदर्श युवक के रूप
में स्वयं को देखते हैं. लेविन जैसे शुचितावादी, मेहनतकश व्यक्ति के रूप
में वे स्वयं को ही चित्रित करते हैं, आरम्भ में ही स्त्रियों के प्रति
न्यायदण्ड थमाते हुए उससे कहलवाते हैं कि (जो स्त्रियां विवाहेतर प्रेम
करती हैं)– “ वे मेरे लिए कीड़ों – मकोड़ों के समान हैं, और सारी गिरी हुई
स्त्रियां एक समान होती हैं. “
मगर इसके विपरीत ही, कई बार एक रहस्य महसूस होता है कि क्या तॉल्स्तॉय
आन्ना और लेविन के उदार चरित्रोँ को समानांतर रख कर यह जता रहे थे कि दोनों
साथ होते तो कुछ बेहतर होता! ......कुछ तो दोनों के बीच अनसुना – अनकहा रह
गया है. कुछ तो अदृश्य ‘कनेक्शन’ आन्ना व लेविन के बीच पूरे उपन्यास में
बना ही रहा है. क्या वे एक से हैं, उदार, स्नेहमय, दयालु और सबसे अलग. एक
तरफ व्यवहारिक व आध्यात्मिक लेविन का समाज, चरित्र, नैतिकता व आध्यात्मिकता
के प्रति अगाध विश्वास जीत जाता है, वह अर्थपूर्ण जीवन जीता है, वहीँ भावुक
और प्रेम की भूखी आन्ना का विश्वास ही नहीँ आत्मविश्वास भी हार जाता है, वह
जीवन ही हार जाती है.
अंत में आन्ना अपने प्रेम का दर्शन पाठकों को सौंप कर बहुत आगे निकल चुकी
होती है. तब लेविन आध्यात्मिक तरीके से जीवन और मृत्यु के बारे में सोचते
हुए अनजाने ही ईश्वर की जगह प्रेम को रख कर जीवन की समीक्षा करता है.
चरित्रहीन स्त्रियों के प्रति उसकी आरंभिक धारणाएँ जो भी रही हों, वह स्वयं
को मलमल की मुलायम पोषाक में महसूस करता है, जो कि प्रतीक है स्त्रीत्व का,
अंतत: लेखक लेविन के माध्यम से आन्ना की भावनाओं को आत्मसात कर उसके ही
जीवन – दर्शन को समझना चाहता है. यहाँ आकर उपन्यास एक दार्शनिक उत्थान को
प्राप्त होता है, और इस उपन्यास को अद्वितीय बनाता है.
बहुत बार यह कहा गया कि आन्ना एक पात्र की नियति से बहुत परे चली गई,
न बना सके तॉल्स्तोय उसे जो बनाना चाहते थे, लेविन – कीटी के दाम्पत्य के
समक्ष कारेनिन, आन्ना व व्रोंस्की के प्रेम त्रिकोण में विचलित ...विनिष्ट
विवाह की परिणति. वे कारेनिन को भी दोषी या कठोर न दिखा सके, न
परिस्थितियोँ में उलझ कर बदल गए व्रोंस्की को भी आन्ना की मृत्यु के लिए
दोषी दिखा सके. चाह कर भी नहीं. आन्ना तो बस प्रेम के लिए बनी थी. तभी तो
दृढ़ चरित्र लेविन भी उसके अतीव आकर्षण से बचा कहाँ रह सका ? क्योंकि आन्ना
तो थी ही ऎसी कि हर कोई उसे बस प्रेम करता. लेकिन कोई तो पूछता कि वह जिस
में खुश रह पाती उस परम – प्रेम, ‘एब्सॉल्यूट लव’ की परिभाषा क्या थी
आन्ना? तुम इतनी बेचैन और असंतुष्ट क्यों थीं, तुमने तो खुद अपना रास्ता
चुना था.
अंत में वह स्वयं अपने तथा व्रोंस्की के प्रेम के बदलते स्वरूप की
समीक्षा करती है. ‘परम प्रेम’ के आभासी शीशे में दिखती, कभी व्रोंस्की जैसे
सजीले जवान को घुट्नों के बल झुका लेने वाली अपनी सुन्दर छवि में बाल पाती
है, और किरचों में बिखर जाती है.
“ मेरा प्यार अधिकाधिक प्रबल और प्रतिदान की माँग करने वाला होता जा
रहा है, जबकि उसका प्रेम ठंडा पड़ता जा रहा है. और यही हमारे एक – दूसरे से
दूर होते जाने का कारण है. “ वह सोचती जा रही थी. “ और इस मामले में कुछ भी
किया नहीं जा सकता. मेरे लिए तो वही सब कुछ है और मैं माँग करती हूँ कि वह
भी अधिकाधिक मेरा होता जाए. मगर वह मुझसे अधिकाधिक दूर होना चाहता है.
हमारे बीच सम्बन्ध स्थापित होने तक हम एक दूसरे की ओर बढ़े, किंतु उसके बाद
बिना रुके अलग – अलग दिशाओं में जाने लगे. और इस स्थिति को बदलना संभव
नहीं. वह मुझसे कहता है कि मैं पागलों की तरह जलती हूँ, खुद भी तो मैं अपने
से यही कहती हूँ कि मैं व्यर्थ ही जलती हूँ. किंतु यह सच नहीं. मैं जलती
नहीं हूँ, मगर मैं नाखुश हूँ. लेकिन...” उसके दिमाग़ में अचानक आ जाने वाले
विचार से वह इतनी विह्वल हो उठी कि उसने मुँह खोल कर साँस ली और बग्घी में
जगह बदल ली. “ काश कि मैं उसकी प्रेयसी के सिवा जो जी जान से केवल उसका
प्यार चाहती है, कुछ भी और हो सकती! किंतु मैं न तो कुछ और हो सकती हूँ और
न ही होना चाहती हूँ. अपनी इस इच्छा से मैं उसमें घृणा उपजाती हूँ, वह
मुझमें क्रोध.” ( पृ.सं. 488-489 भाग- 7)
यह बहुत व्यापक सत्य है प्रेम का जो तॉल्स्तोय आन्ना से सहज ही एक
आत्ममंथन के दौरान कहलवा गए. प्रेम की इस परिणति को कौन सा काल या परिवेश
अपने में बाँध सका है? यही ‘परम प्रेम’ के अस्थायी छिलके में लिपटा स्त्री
– पुरुष के प्राकृतिक आकर्षण युक्त खिंचाव, सम्बन्ध स्थापन, प्रजनन के बाद
का ‘परम सत्य’ है.
इसे कुछ भी कहें, है तो यह स्त्री – पुरुष सम्बन्ध की सहज प्रक्रिया, बस एक
रासायनिक प्रक्रिया की तरह ही, इसकी भी तीन अवस्थाएँ होती हैं. अग्र ,
प्रतीप तथा चरम स्थिति ‘उदासीनता’. अग्र में पुरुष स्त्री के पीछे भागता
है, प्रतीप में स्त्री पुरुष को जकड़ती है. फिर मोहभंग. इस प्रक्रिया को फिर
शुरु करना हो तो ‘उत्प्रेरक’ की आवश्यकता होती है, वही केटेलिस्ट है... ज़रा
सा लवण बेवफाई का!
वैसे तॉल्स्तोय की अनुसन्धानी कलम ने आन्ना के विरोधाभासों से भरे
जटिल चरित्र को उसकी समस्त त्रुटियों के साथ उकेरा है. एक सच्चे कलाकार की
तरह जो जानता है कि हर कलाकृति सम्पूर्णता में नहीं बल्कि त्रुटियों के साथ
अद्वीतिय होती है. आन्ना की कोमल सम्वेदनाओं के भीतर अपने सौन्दर्य तथा
बुद्धिमत्ता को लेकर आत्ममोहग्रस्त, आत्मकेन्द्रित एक रूपगर्विता को भी
यथासम्भव बाहर निकाला है. हर सामूहिक बॉल में आन्ना को पता होता था कि वह
नवयुवकों के आकर्षण का केंद्र है ( वह तो हर सुन्दर स्त्री को छठी इन्द्री
की तरह ईश्वर – प्रदत्त होता ही है! ) फिर भी वह कई जगह अपने ‘चार्म’ का
इस्तेमाल करती है. चाहे लेविन से उसकी प्रथम व अंतिम मुलाकात हो या
व्रोंस्की के मित्र ‘ वेस्लोवस्की’ के साथ छेड़छाड़ हो. लेविन के लिए तो वह
बाक़ायदा सोचती है, कि कैसे अपनी पत्नी कीटी से प्रेम करने वाले इस
सदगृहस्थ, दृढ़ चरित्र लेविन को भी अपने प्रेम में पागल कर ले.
आन्ना को पढ़ कर, मुझसे भी पहले पाठकों, विश्लेषकों को यह अहसास हो
चुका है कि तॉल्स्तोय की कलम से आज़ाद हो गई थी आन्ना, तॉल्स्तोय की थमाई
हुई नैतिक ज़िम्मेदारियोँ से परे आन्ना ने अपना विश्लेषण खुद किया है. लेविन
की महानता और नैतिकता और जीवन को उचित ढंग से जीने के तमाम उदाहरणों के
बावज़ूद, पाठक का मन अंत तक आते - आते यह नहीं मानना चाहता कि लेविन – कीटी
के दाम्पत्य से समानांतर, आन्ना का विचलन, आन्ना का प्रेम और पलायन, कोई
सबक था तॉल्स्तोय द्वारा तत्कालीन रूस के समाज दिया गया. उस विचलन में पाठक
आन्ना के साथ विचलित होते है, व्रोंस्की से मिल कर सुख पाते हैं.... आन्ना
के चारित्रिक पतन व परिस्थितियों में वह आन्ना के साथ होता है. आन्ना नहीं
बन पाती उदाहरण, कोई सबक बेवफाई का, अपने जीवन को स्वयं ही नष्ट करते चले
जाने के बावज़ूद. आत्महत्या के बावज़ूद भी कोई पाठक सबक नहीं लेता..या तो
विश्वास ही नहीं करता कि आन्ना मर सकती है या फिर बार – बार प्रलाप करता
है, कौन कहता है, तॉल्स्तोय की आन्ना ने आत्महत्या कर ली है?
सच तो यह है कि आन्ना तो अपनी आत्महत्या से कुछ महीनों पहले अपने ही
समाज के हाथों मारी जाती है, जब वह मास्को लौटती है. इसलिए मोज़ेज़ की पंक्ति
जो, उपन्यास के पहले ही पन्ने पर, आन्ना के खुशगवार जीवन के शुरुआत ही में
अदृश्य समाधिलेख की तरह लिख दी गई हैं, वे ग़लत हैं, ईश्वर के न्याय से बहुत
पहले ही मानव समाज की पुरुषों द्वारा तय असमान व अपूर्ण न्याय प्रणाली, यह
काम कर डालती है. पीटर्सबर्ग की एक सुन्दर, सभ्रांत, एरिस्टोक्रेटिक आन्ना
की प्रेम की तलाश और भावनात्मक पारदर्शिता उसे समाज में तिरस्कृत बना देती
है. आन्ना का अवैधानिक प्रेम उसे निर्वासन की तरफ धकेल देता है. जैसा कि
उपन्यास के अंत में आन्ना स्वयं को रेल के नीचे धकेल देती है. यह आन्ना का
अंत नहीं, वह टेबल पर पड़ी विद्रूप से मुस्कुराती आन्ना की नंगी – कुचली लाश
नहीँ है, उस समय के रूसी समाज के, दीवालिया होने के बावज़ूद, एरिस्टोक्रेसी
का दिखावा करते उथले उच्च वर्ग का कुचला चेहरा है.
( Anna Karenina - Tolstoy, Famous Russian Novel of victorian times
)
मनीषा कुलश्रेष्ठ
manisha@hindinest.com
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