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साक्षात्कार

कोरोना वैक्सीन, एक वार्ता डॉक्टर संजय राय से

(डॉ. संजय राय ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज कम्युनिटी मेडिसिन विभाग में प्रोफेसर हैं डॉक्टर राय इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं, डॉ. संजय राय कोवैक्सीन नामक कोरोना की वैक्सीन के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर भी है। हिंदेनेस्ट लिए यह आलेख डॉक्टर संजय राय टेलीफोन पर हुई वार्ता पर आधारित है)

प्रश्न : क्या आपको लगता है कि हमें वैक्सीन के बारे में जनता के बीच में जाकर बात करनी चाहिए या इस पर सभी तरीके के निर्णय और नतीजे सिर्फ डॉ.क्टरो, प्रबंधन और सरकार के बीच रहना चाहिए.


उत्तर: नहीं मुझे लगता है कि वैक्सीनेशन पर बात जरूर होनी चाहिए यदि जो लोग वैक्सीनेशन के बारे में पूरी तरह जानकारी रखते हैं या इस मुहिम पर काम कर रहे हैं वह लोग जनता के बीच में आकर बात नहीं करेंगे तो तमाम तरीके की अफवाह सोशल मीडिया पर या अन्य माध्यमों के द्वारा फैलती रहेंगी। जनता तक यह पहुंचना चाहिए कि कोई भी वैक्सीन सौ प्रतिशत सुरक्षा नहीं देती। और जनता तक यह भी पहुंचना चाहिए की वैक्सीनेशन को समर्थन देना एक बात है और उसे एक जादुई कारनामा बताना दूसरी बात लेकिन यह भी समझना पड़ेगा कि वैक्सीन को पूरी तरह नकार देना भी उचित नहीं है।

प्रश्न : भारत में दो तरह की वैक्सीन है और समूचे विश्व में कई तरह की कई नामों की वैक्सीन है सामान्य जन इन सभी नामों को लेकर भ्रमित है और ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। आपके विचार से कौन सी वैक्सीन बेहतर है और क्यों?

उत्तर : यह प्रश्न तब उचित होता यदि हमारे पास चुनाव होता क्योंकि अभी कोई भी वैक्सीन पूरी तरह से व्यक्ति को संक्रमण से सुरक्षित नहीं करती तो फिलहाल जो भी वैक्सीन जो देश अपने नागरिकों के लिए मुहैया करा सके, वह वैक्सीन जो हमें काफी हद तक सुरक्षा दे और सुविधा अनुसार मिल सके उसी को ही लगवा लेना चाहिए।, सबसे अधिक सुरक्षा तो केवल प्राकृतिक रूप से हुये कोरोना इंफैक्शन से ही मिलती है .

प्रश्न: क्या पिछले वर्ष हुए कोरोना इनफेक्शन के बाद ठीक हुए मरीजों में इस वर्ष कोविड-19 का असर नहीं हुआ क्योंकि मैंने जो सुना है कि यह वायरस बराबर अपना स्ट्रेन बदल रहा है तो पिछले संक्रमण का असर या पिछले स्ट्रेन पर आधारित वैक्सीन किस हद तक आगे होने वाले संक्रमण के लिए कारगर होगा।

उत्तर: वायरस में म्यूटेशन हो रहे हैं , यह सच है लेकिन हमारे पास बहुत सालों के डाटा उपलब्ध नहीं है क्योंकि यह बीमारी नयी है। हमारे पास केवल मात्र 2 वर्षों का अनुभव है उसी पर आधारित कर मैं यह कह सकता हूं कि जिन समुदायों में या इलाकों में पिछले वर्ष बहुत ज्यादा कहर बरपा हुआ था उनमें इस वर्ष काफी हद तक बीमारी का बहुत दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिला। उदाहरण के तौर पर पिछले वर्ष मुंबई के ओवर पापुलेटेड धारावी इलाके में जहां आपस में दूरी बरतना लगभग असंभव है पिछले साल कोरोना संक्रमण की दर बहुत अधिक थी ,पर इस साल समूची मुंबई चपेट में थी पर धारावी से संक्रमण फैलने की सूचनाएं नहीं आईं। इसी तरह दिल्ली के नबी सराय और जहांगीर पुरी जैसे इलाके जो पिछले वर्ष लगातार रेड ज़ोन बने रहे इस वर्ष वहां से भी ना के बराबर सूचनाएं आईं.

प्रश्न : तो क्या हमें वैक्सीनेशन ना कराकर प्राकृतिक इन्फेक्शन का ही इंतज़ार करना चाहिए.
उत्तर : नहीं मेरा यह कहने का अर्थ बिल्कुल भी नहीं है जब यह कहा जाता है कि प्राकृतिक इंफेक्शन अधिक सुरक्षा प्रदान कर रहा है तो यह केवल एक जानकारी की बात है। जहां तक जल्दी से जल्दी एक बड़े समुदाय को सुरक्षा प्रदान करने की बात है ,वहां हमें वैक्सीनेशन करना ही होगा लेकिन हमें अपनी प्राथमिकताएं तय करनी होगी जो हमने की भी हैं। पहले दौर में हमने स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीके लगाए दूसरे दौर में साठ से ऊपर के लोगों को इम्यूनाइज़ किया गया उसके बाद पैंतालीस वर्ष के ऊपर और कोमॉरबिड लोगों को वैक्सीनेशन में शामिल किया गया और अब हम 18 से 45 वर्ष के लोगों को वैक्सीन लगा रहे हैं बच्चों के लिये सुरक्षित टीके पर ट्रायल चल रहे हैं।

प्रश्न: इस बात पर मेरे मन में एक सवाल आ रहा है अभी कुछ ही दिनों पहले एक बड़े नेता ने नेशनल टीवी पर कहा कि तीसरी लहर आएगी और हम बच्चों को बचा नहीं पाएंगे!

उत्तर : यह जो पैनिक क्रिएट हो रहा है डर फैल रहा है लोगों के मन में कि तीसरी लहर में केवल बच्चे ही संक्रमित होंगे और उन्हें बीमारी से बचाना असंभव होगा क्योंकि अभी हमारे पास जो तैयारी है या अनुभव है वह व्यस्को के लिए है। बच्चे अपने माता-पिता के पास आकर पूछते हैं कि क्या सच में कोई बच्चा नहीं बचेगा ,वे बुरी तरह से मानसिक अवसाद में जा रहे हैं। यह कहना कहां तक उचित है कि तीसरी लहर में केवल बच्चे ही प्रभावित होंगे और संक्रमण बहुत बड़े स्तर पर होगा। क्या आपको सच में ऐसा लगता है कि अब तक बच्चों में संक्रमण नहीं हुआ होगा ? छोटे घरों या फ्लैटों में जब मां पिता या अन्य बड़े संक्रमित हुये होंगे तो क्या बच्चे नहीं ?

हमारे देश की जनसंख्या और सामान्य जीवन शैली को देखते हुये, और जिस लेवल पर इस बार लोग संक्रमित हुए हैं मुझे नहीं लगता कि बच्चों में सब क्लीनिकल संक्रमण नहीं हुआ होगा । मेरे अनुमान से अब तक कम से कम 80 से 90% बच्चे संक्रमित हो चुके होंगे और बीमारी के बाद प्राकृतिक रूप से सुरक्षित भी उनके लिए स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ाना या वैक्सीन की सुरक्षा पर रिसर्च करना ,ट्रायल करना एक अलग बात है जो करना चाहिए पर इस तरह भय का माहौल बिल्कुल अनुचित है।

दूसरे बच्चों में यह बीमारी काफी हल्की होती है । हल्के वायरल इंफैक्शन जितनी ही , इसलिए हमें डरने की आवश्यकता नहीं । केवल कुछ केसेस में मल्टीपल ऑर्गन इन्फ्लेमेटरी डिजीज मिली है जो कह सकते हैं काफी ज्यादा बीमार करती है और मृत्यु भी हो सकती है पर इसका इंसीडेंस बहुत ही कम है जिस देश में प्रतिवर्ष दो हजार बच्चे भुखमरी से मरते हो उस देश में एक बहुत दूर की संभावना पर अपने संसाधन और सामर्थ्य खर्च करना अभी बहुत मुनासिब नहीं होगा हमें अपनी स्वास्थ्य सेवाओं की भी प्राथमिकताएं तय करनी होगी

प्रश्न: आपके अनुसार देश के 80% से ऊपर बच्चों में यह बीमारी सबक्लिनिकल या बिना लक्षणों के रूप में अब तक हो गई होगी तो क्या इससे हम यह समझे कि बच्चों में वैक्सीनेशन की आवश्यकता नहीं है? यह प्रश्न इसलिए भी पूछा कि मेरी जानकारी के मुताबिक एम्स दिल्ली में बच्चों की वैक्सीन के लिये ट्रायल चल रहे हैं .

उत्तर: कोरोना एक नई चीज है वैश्विक इतिहास में इसका कोई अनुभवजन्य उपाय नहीं है अनुमानता हमें बच्चों के लिए बहुत ज्यादा डरने की आवश्यकता नहीं है मगर इसका अर्थ यह नहीं कि हमें सतर्क नहीं रहना है , वैक्सीनेशन की आवश्यकता कितनी पड़ेगी कब पड़ेगी पड़ेगी या नहीं पड़ेगी यह समय के गर्त में है मगर हमें एविडेंस जनरेट/ट्रायल्स कर लेने चाहिए जिससे तो पता रहे कि हमारे पास बच्चों के लिए कोई सुरक्षित और असरकारक वैक्सीन है या नहीं।

प्रश्न: क्या कोरोना फेफड़ो के अलावा शरीर के अन्य अंगों पर भी दुष्प्रभाव डाल रहा है, कोरोना का रक्त में शुगर बढ़ने से क्या संबंध है,?

उत्तर: कोरोना साधारण वायरल संक्रमण नहीं है यह वायरस स्वयं और बाद में इससे लड़ने के लिए शरीर द्वारा बनाए गए एंटीबॉडीज के जरिए ऑटोइम्यून बीमारियां कर रहा है यानी शरीर का प्रतिरक्षा सिस्टम इस बीमारी के लड़ने के लिए जो भी उपाय करता है वह कई बारी शरीर की सामान्य कोशिकाओं ऊतकों को ही नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है। जिसके चपेट में गुर्दे ह्रदय और व अन्य जरूरी अंग आ सकते हैं। तर्कसंगत स्टीरायड इसी आटोइम्यूनिटी के लिए दी जा रही है।


प्रश्न: हम एक बार फिर वैक्सीन पर वापस लौटते हैं क्या आप बता सकते हैं कि वैक्सीन बनने में या मरीज के पास तक पहुंचने में वितरण में लगने वाले समय के अतिरिक्त कितना समय लगता है ?

उत्तर : कोविशील्ड वैक्सीन प्रतिमाह करीब 5 करोड़ डोज़ तैयार होतीं हैं। वहीं को वैक्सीन वैक्सीन प्रतिमाह डेढ़ करोड़ बनती है को वैक्सीन में वायरस को कल्चर करना पड़ता है इन एक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन के तौर पर दिया जाता है जबकि कोविशील्ड में वायरस का एक जेनेटिक स्ट्रक्चर ही वैक्सीन बनाने में प्रयोग होता है। सबसे जल्दी बनने वाली वैक्सीन मैसेंजर आर एन ए पर आधारित होती हैं जैसे मॉडर्न आया फाइजर की वैक्सीन
प्रश्न : क्या यह वायरस मनुष्य द्वारा या प्रयोगशाला निर्मित है ?

उत्तर: इसकी संभावना बहुत ज्यादा है , वैज्ञानिक मोंटेग्नियर जिन्होंने एचआईवी वायरस की खोज की उनके अनुसार चाइना की वुहान स्थित लैब में एचआईवी के वैक्सीन की रिसर्च चल रही थी उसी दौरान संभवत यह वायरस लैब में उत्पन्न हुआ। उसी लैब की एक महिला टेक्नीशियन विश्व में सबसे पहले कोरोना बीमारी से ग्रस्त हुई, उसके बाद उसके एक पुरुष मित्र को और फिर ये सामान्य जन में फैल गया
ऐसा सोचने का एक और कारण है कि इस प्रकार की हर बीमारी का एक इंटरमीडिएट होस्ट होता है ,चाहे वह चमगादड़ हो ,मच्छर हो या कोई अन्य जीव लेकिन कोविड-19 मनुष्य से मनुष्य में फैलता है इसका कोई भी अन्य इंटरमीडिएट होस्ट नहीं है। लेकिन यह सब आंकड़ों पर आधारित संभावनाएं ही हैं।

प्रश्न: कोविड की वैक्सीन और फार्मास्युटिकल कम्पनियां इन दोनों के पारस्परिक समीकरण पर कुछ बताइये

उत्तर: समीकरण तो स्पष्ट है , विश्व के कुछ ही देश हैं जहां सरकार के अधीन ऐसी लैब हैं जो सभी तरह की सुविधा सम्पन्न हों, जहां उच्च स्तर के अनुसंधान किये जा सकें ,
अधिकतर हमें फार्मा कंपनियों द्वारा स्पांसर्ड प्रयोगशालाओं पर निर्भर रहना होता है कभी पूर्णतया कभी आंशिक तौर पर इसमें सीधे तौर पर कोई बुराई भी नहीं है । सरकारी संस्थाएं अपना हस्तक्षेप पूरा रखतीं हैं, पारदर्शिता लाने का भी यथासंभव प्रयत्न होता है । हमें यह तो मानना ही पड़ेगा कि फार्मास्युटिक एक व्यवसाय है कोई समाजसेवा नहीं । एक बात यह भी है कि व्यवसायिक हैं यही बात साबित नहीं करती कि वे सभी कंपनियां अनैतिक भी हैं ....पर सरकारों और कंपनियों के बीच कोई सांठगांठ नहीं हो सकती ऐसा भी सिद्ध करना मुश्किल है


वार्ता कार - डॉ. ज्योत्स्ना मिश्रा
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ
नई दिल्ली
 

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